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Mar 10, 2013

स्वामी विवेकानंद- ये साक्षात् जगदम्बा की प्रतिमूर्ति हैं


ये साक्षात् जगदम्बा की प्रतिमूर्ति हैं   

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद सामाजिक जीवन की मूर्खता तथा अखबारी हो-हल्ले से ऊब चुके थे। अमेरिकी लोगों में स्वामीजी की सुविधाओं का ध्यान रखने वाले उनके अनेक प्रशंसक एवं भक्त थे, जो अभाव के समय उन्हें धन देते थे तथा उनके निर्देशों पर चलते थे। अमेरिकी महिलाओं के वे विशेष कृतज्ञ थे, और उनकी प्रशंसा करते हुए स्वामी जी ने अपने भारतीय मित्रों को कई पत्र लिखे।

एक पत्र में उन्होंने लिखा- इस देश की महिलाएँ दुनिया भर में नहीं हैं। वे कैसी पवित्र, स्वावलम्बिनी और दयावती हैं। महिलाएँ ही यहाँ की सब कुछ हैं। विद्या, बुद्धि आदि सभी उनके अंतर्गत हैं।
एक अन्य पत्र में वे लिखते हैं- (अमेरिकी लोग) महिलाओं के प्रति अतीव सम्मान का भाव रखते हैं और वे भी इन लोगों के जीवन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। तात्पर्य यह कि इस तरह की पूजा यहाँ पूर्णता तक पहुँच चुकी है। खैर- इस देश की नारियों को देखकर मेरी तो बुद्धि ही ठिकाने आ गई।
ये रूप में लक्ष्मी और गुण में सरस्वती हैं- ये साक्षात् जगदम्बा की प्रतिमूर्ति हैं इस तरह की माँ जगदम्बा अगर अपने देश में एक हजार तैयार करके मर सकूँ, तो निश्चिंत होकर मर सकूँगा। तभी हमारे देश के आदमी आदमी कहलाने लायक हो सकेंगे।
1894 ई. में खेतड़ी नरेश को लिखे एक पत्र में उनकी यह प्रशंसा शायद सर्वोच्च सुर तक पहुँची थी -
अमेरिकी महिलाओ! सौ जन्म में भी मैं तुमसे उऋण न हो सकूँगा- गत वर्ष ग्रीष्म में दूर देश से नाम-यश-धन विद्याविहीन बंधरहित असहाय दशा में प्राय: खाली हाथ जब मैं एक परिव्राजक प्रचारक के रूप में इस देश में आया, उस समय अमेरिका की महिलाओं ने मेरी सहायता की, मेरे ठहरने तथा भोजन की व्यवस्था की, वे मुझे अपने घर ले गईं तथा उन्होंने मेरे साथ पुत्र तथा सहोदर जैसा बर्ताव किया।
जब उनके पुरोहितों ने इस भयानक विधर्मी को त्याग देने के लिए उन्हें बाध्य करना चाहा, जब उनके सबसे अंतरंग बंधु इस संदिग्ध भयानक चरित्र के अपरिचित विदेशी व्यक्ति का संग छोडऩे के लिए उपदेश देने लगे, तब भी वे मेरी मित्र बनी रहीं। ये महिलाएँ ही चरित्र तथा अंत:करण के संबंध में कोई निर्णय देने की अधिकारी हैं- क्योंकि स्वच्छ दर्पण में ही प्रतिबिंब पड़ता है।
कितने ही सुंदर पारिवारिक जीवन मैंने यहाँ देखे हैं, कितनी ही ऐसी माताओं को मैंने देखा है, जिनके निर्मल चरित्र तथा नि:स्वार्थ संतान-स्नेह का वर्णन भाषा के द्वारा नहीं किया जा सकता। कितनी ही ऐसी कन्या तथा कुमारियों को देखने का मुझे अवसर मिला है, जो कि डायना देवी के मंदिर पर स्थित तुषारकणिकाओं के समान निर्मल, असाधारण शिक्षिता तथा मानसिक एवं आध्यात्मिक सब दृष्टि से उन्नत हैं। तब क्या अमेरिका की सभी नारियाँ देवी स्वरूपा हैं?
यह बात नहीं, भले-बुरे सभी स्थानों में होते हैं। किंतु दुर्बल व्यक्तियों द्वारा जिसे हम दुष्टों के नाम से अभिहत करते हैं, किसी जाति के बारे में किसी प्रकार की धारणा नहीं बनाई जा सकती, क्योंकि वे तो व्यर्थ के कूड़े-करकट की तरह पीछे रह जाते हैं जो लोग सत्, उदार तथा पवित्र होते हैं, उनके द्वारा ही राष्ट्रीय जीवन का निर्मल तथा शक्तिशाली प्रवाह निर्धारित हुआ करता है। (विवेकानंद एक जीवनी से)


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