बेटी होना कभी न खलता
- अनामिका
धर्म- बंधन में हर कोई बंधता
हर प्राणी यहाँ कर्मठ बनता
छोटे बड़ों के करते सम्मान
बड़े दिखाते बड़प्पन बातों ही बातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
राजा- प्रजा का भेद न होता
कटुता का कोई बीज न बोता
रहते मिलजुल कुटुंब समान
ऊंच- नीच का भाव न पलता लोगों के जज्बातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
अधिक न कोई संचय करता
कभी न कोई भूखों मरता
होता न कोई देश में बेईमान..
अमन- चैन से रहते, होते न शामिल उत्पातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
हंसी- खुशाी से मिलजुल रहते
मानवता की इज्जत करते
मेहनत का सब करते मान
जीते ना झूठे वादों और खैरातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
देह का व्यापार न चलता
बेटी होना कभी न खलता
नर- नारी होते एक समान
दहेज प्रथा का चलन न होता शादी की सौगातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
काले धन का नाम न होता
महंगाई का काम न होता
डालर पर होती रुपए की उड़ान
डीजल- पेट्रोल होता सस्ता, इन मुश्किल हालातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
शिक्षा का कर चहु-मुखी विकास
गरीबी का कर जड़ से विनाश
होता रोटी, कपड़ा और मकान,
मगन न रहते लोग हर पल घातों- प्रतिघातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
मेरे बारे में -
हर प्राणी यहाँ कर्मठ बनता
छोटे बड़ों के करते सम्मान
बड़े दिखाते बड़प्पन बातों ही बातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
राजा- प्रजा का भेद न होता
कटुता का कोई बीज न बोता
रहते मिलजुल कुटुंब समान
ऊंच- नीच का भाव न पलता लोगों के जज्बातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
अधिक न कोई संचय करता
कभी न कोई भूखों मरता
होता न कोई देश में बेईमान..
अमन- चैन से रहते, होते न शामिल उत्पातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
हंसी- खुशाी से मिलजुल रहते
मानवता की इज्जत करते
मेहनत का सब करते मान
जीते ना झूठे वादों और खैरातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
देह का व्यापार न चलता
बेटी होना कभी न खलता
नर- नारी होते एक समान
दहेज प्रथा का चलन न होता शादी की सौगातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
काले धन का नाम न होता
महंगाई का काम न होता
डालर पर होती रुपए की उड़ान
डीजल- पेट्रोल होता सस्ता, इन मुश्किल हालातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
शिक्षा का कर चहु-मुखी विकास
गरीबी का कर जड़ से विनाश
होता रोटी, कपड़ा और मकान,
मगन न रहते लोग हर पल घातों- प्रतिघातों में
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...
मेरे बारे में -
मेरे पास अपना कुछ नहीं है, जो कुछ है मन में उठी सच्ची भावनाओं का चित्र है और सच्ची भावनाएं चाहे वो दु:ख की हों या सुख की... मेरे भीतर चलती हैं... महसूस होती हैं... और मेरी कलम में उतर आती हैं...!
संपर्क- C/O सुनीता खुराना, मकान नं. 2513,सेक्टर-16, फरीदाबाद- 121002 हरियाणा
6 comments:
बहुत बहुत शुभकामनायें......आज अनामिका जी का नाम पता चल गया :-)
काश ऐसा होता...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
इतने अच्छे ख़्यालात हैं, हम तो चाहते हैं कि शासन ऐसे ही हाथों में हो।
यही तो मुश्किल है ,अपने शासन से खल-जनों को कैसे दूर रखेंगी वे तो बिना काज दाहिने-बायें आ खड़े होंगे?सबसे पहले तो उनसे निबटना है.
वाह अनामिका दी अति सुन्दर... आज तो छा गयी आप .....!!
उम्मीदों भरी संभावनाएं । काश ऐसा कभी हो । सुन्दर कविता ।
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