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Jul 1, 2022

आधुनिक बोध कथा- 7 - तेरी बार

 - सूरज प्रकाश

एक गाँव में दो लड़के रहते थे। दोनों कोई काम धाम नहीं करते थे और न ही पढ़ते ही थे।। दिन भर ऊधम मचाते।

एक दिन दोनों के पिताओं ने एक फैसला लिया कि इन्हें धंधे पर लगाया जाए। पहले लड़के के पिता ने उसे केले लेकर दिए और दूसरे बच्चे के पिता ने उसे अमरूद खरीद कर दिए कि जाओ और बेचो तथा अपनी जिंदगी शुरू करो।

दोनों बाजार में अपना -अपना सामान लेकर बैठ गए। अब हुआ यह कि केले वाले का पहला केला बिक गया। उसकी बोहनी हो गई। अमरूद वाले की जब बहुत देर तक बोहनी नहीं हुई, तो केले वाले ने दोस्ती निभाते हुए अमरूद वाले से कहा - चल मैं तेरी बोहनी करा देता हूँ। ये ले पैसे ले और एक अमरूद मुझे दे दे। इस तरह दोनों की बोहनी हो गई।

अब हुआ यह कि दिन भर दोनों के पास कोई ग्राहक नहीं आया; लेकिन दोनों बारी-बारी से, केले वाला अमरूद वाले से और अमरूद द्वारा केले वाले से फल खरीद कर खाते रहे और एक दूसरे की बिक्री कराते रहे।

शाम हो गई। सारे अमरूद खत्म हो गए और सारे केले भी खत्म हो गए; लेकिन कमाई के नाम पर दोनों के पास सिर्फ एक ही सिक्का था। वे खुश- खुश घर चले आए कि सारा माल बिक गया।

आगे चलकर उनमें से एक राजनीति में चला गया और दूसरा नामी उद्योगपति बना।

दोनों ने एक दूसरे का ख्याल रखना जारी रखा।

वे आज भी वही कर रहे हैं। माल जनता का और वे दोनों दिन भर इधर से उधर, उधर से इधर करते रहते हैं।

आज भी वे इस बात की परवाह नहीं करते कि शाम के समय सिक्का किसके पास है। बस वे इसी बात को लेकर खुश रहते हैं कि जनता से औने पौने दाम से खरीदा या हड़पा पूरा माल खप गया।

अब उनके साथ ब्यूरोक्रेसी भी जुड़ गई है जो दोनों के फायदे के लिए योजनाएँ बनाने के एवज में दो पैसे अपने लिए भी रख लेते हैं।

डिस्‍क्‍लेमर – ये विशुद्ध बोधकथा है और इसके सारे पात्र काल्पनिक हैं। इसका किसी देश की राजनीति से या अर्थव्यवस्था के स्तम्भों से कुछ लेना देना नहीं है।

9930991424, kathaakar@gmail.com

2 comments:

Anonymous said...

सही आकलन। यही तो हो रहा है। बहुत सुंदर। सुदर्शन रत्नाकर

Sonneteer Anima Das said...

सुंदर एवं सार्थक.... तिर्यक 🙏