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Mar 1, 2022

नवगीत- कैसे कहूँ

 - शशि पाधा





क्या कहूँ , कैसे कहूँ

इक नादानी हो गई

मौसमों से आज मेरी

छेड़खानी हो गई ।


फागुनी बयार की

कैसी मन मर्जियाँ

उड़ने लगी हवाओं में

प्रीत की अर्ज़ियाँ

उलझ गई डोरियाँ, रूह रुमानी हो गई ।

देखते -देखते इक कहानी हो गई ।


लाज की देहलीज पे

खनक गयी साँकलें

द्वार और दीवार में

गुफ़्तगू, अटकलें

झाँझरों की आज फिर, मन मानी हो गई

अनलिखी अनकही इक कहानी हो गई ।


छेड़ दिए मेघ ने

गीत मल्हार के

पनघटों पे राग थे

नेह मनुहार के

खुशबुएँ मली, देह रात रानी हो गई 

मौसमों से आज फिर छेड़खानी हो गई ।


यह किस की बरज़ोरियाँ

घूँघटा सरक गया

देख रूप-रंग, चाँद

राह में अटक गया

चाँदनी रात की मेहरबानी हो गई

धरा से आसमान तक, नई कहानी हो गई ।

मौसमों से आज फिर छेड़खानी हो गई ..

सम्पर्कः 10804, Sunset Hills Rd,  Reston Virginia, 20190। USA, shashipadha@gmail।com


3 comments:

शिवजी श्रीवास्तव said...

वाह...उलझ गई डोरियाँ, रूह रुमानी हो गई ।...बहुत सुंदर गीत।हार्दिक बधाई शशि पाधा जी।

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर गीत।
हार्दिक बधाई आदरणीया दीदी 💐🌷

सादर प्रणाम 🙏

mgdhn said...

माधुर्य पुर्ण रचना