क्या कहूँ , कैसे कहूँ
इक नादानी हो गई
मौसमों से आज मेरी
छेड़खानी हो गई ।
फागुनी बयार की
कैसी मन मर्जियाँ
उड़ने लगी हवाओं में
प्रीत की अर्ज़ियाँ
उलझ गई डोरियाँ, रूह रुमानी हो गई ।
देखते -देखते इक कहानी हो गई ।
लाज की देहलीज पे
खनक गयी साँकलें
द्वार और दीवार में
गुफ़्तगू, अटकलें
झाँझरों की आज फिर, मन मानी हो गई
अनलिखी अनकही इक कहानी हो गई ।
छेड़ दिए मेघ ने
गीत मल्हार के
पनघटों पे राग थे
नेह मनुहार के
खुशबुएँ मली, देह रात रानी हो गई
मौसमों से आज फिर छेड़खानी हो गई ।
यह किस की बरज़ोरियाँ
घूँघटा सरक गया
देख रूप-रंग, चाँद
राह में अटक गया
चाँदनी रात की मेहरबानी हो गई
धरा से आसमान तक, नई कहानी हो गई ।
मौसमों से आज फिर छेड़खानी हो गई ..
सम्पर्कः 10804, Sunset Hills Rd, Reston Virginia, 20190। USA, shashipadha@gmail।com
3 comments:
वाह...उलझ गई डोरियाँ, रूह रुमानी हो गई ।...बहुत सुंदर गीत।हार्दिक बधाई शशि पाधा जी।
बहुत ही सुन्दर गीत।
हार्दिक बधाई आदरणीया दीदी 💐🌷
सादर प्रणाम 🙏
माधुर्य पुर्ण रचना
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