उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Dec 18, 2017

बाबा के कटोरे में

बाबा के कटोरे में 
-जवाहर चौधरी

लोगों! ... मुझे सन् 2029 का समय दिख रहा है ....बाबा ने अपने कटोरे में झाँकते हुए कहा।
उपस्थित जन चौंक पड़े. एक बोला,- ‘बाबा सरकार किसकी है!!
सरकार देसी है। मंत्री घोड़ों पर चल रहे हैं। प्रधान मंत्री हाथी पर बैठ कर नगर भ्रमण को जा रहे हैं। सैनिकों के हाथ में बंदूकें नहीं भाले-बरछी हैं। जनता प्रजा में बदल चुकी है और महाराज की जेजेकार कर रही है...
ओ बाबा, ... मोबाइल पर बाजीराव मस्तानी देख रहे हो क्या!?’
मोबाइल नहीं है बच्चे, ये करिश्माई कटोरा है, इसमें अतीत नहीं भविष्य दीखता है। मुझे वही भविष्य दिख रहा हैं जैसा कि आप लोग बना रहे हो। आप लोग बोलो तो आगे की बात कहूँ, ना बोलो तो नहीं कहूँ...। बाबा ने पंचधातु की बनी अपनी थाली जिसमें पंचतैल यानी पाँच तरह का तैल भरा है, में झाँक कर देखते हुए कहना शुरू किया। आसपास इकट्ठा लोग चमत्कार की उम्मीद से ही खड़े थे ना कैसे बोलते। 
बाबा बोलते रहे,- ‘पर्दा प्रथा है, औरतें बाहर नहीं निकलती हैं, सड़कों पर पीली धूल फैलाई गई है, इससे गन्दगी हो रही है लेकिन परम्परा का पालन करते हुए सब प्रसन्न हैं। जो प्रसन्न नहीं हैं वे डर के मारे प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं। पूजा स्थलों पर रजिस्टर रखे हैं जिस पर भक्तों की उपस्थिति लगायी जाती है। सबके माथे पर शिखा यानी चोटी है, जिनके नहीं है और वे भी जो गंजे हैं उन्हें दण्डित किये जाने का प्रावधान है। बाल विवाहों का चलन शुरू हो गया है.....’  बाबा ने बताया।

आप लोग भी मेरी तरह समझदार हैं सो यह बताने की कतई ज़रूरत नहीं है कि बाबा पँहुचे हुए हैं। मुझे भी किसी ने नहीं बताया था कि वे पहुँचे हुए हैं लेकिन मैंने एक झटके में मान लिया कि वे पहुँचे हुए हैं। एक बार आदमी बाबा बन जाए तो उसे पहुँचा हुआहोने से कोई रोक नहीं सकता है, कानून भी नहीं और जमाना तो मानने के लिए उधार ही बैठा रहता है। जब सब किसी को पहुँचा हुआ मान लें तो आपको भी मान लेना चाहिए, इसी को परंपरा का पालन करना कहते हैं। सीधे सरल यानी गऊ टाइप आदमी की यही पहचान होती है कि जब भी कोई पहुँचा हुआ दिखे वह सीधे उसके चरणों में पहुँच जाए। इधर बाबा आए हैं तभी से आसपास वाले घेरे खड़े हैं। चुनाव दूर हैं इसलिए पानी की समस्या इधर रोजी-रोटी की समस्या से भी बड़ी हो गई है। नल आते हैं और चिरंजीव भवकह कर फौरन चले जाते हैं। जैसे नारद नारायण-नारायण कहते आते हैं और वैसे ही नारायण-नारायण कहते चले जाते हैं। टेंकर वाला पानी ले कर आता है तो रिश्ते-नाते, मित्र-मोहब्बत, पास-पड़ौस सब मिथ्या हो जाता है। गीता में लिखा है कि इस संसार में कोई किसी का सम्बन्धी नहीं, कोई सगा नहीं, सब प्यासी आत्माएँ हैं और टेंकर के आते ही पहले अपना बरतन भरने में लग जाती हैं। वृद्धजन कभी भगवान से साँसें माँगा करते थे अब पानी माँगते हैं। न ढंग की साँसे मिलती हैं न पीने लायक पानी ।
बादल आते हैं भरे-भरे से, लेकिन डाकिये की तरह हमारा घर (क्षेत्र) छोड़ कर आगे निकल जाते हैं। एक बार अधीर हो मैंने डाकिये से पूछा भइया सबके यहाँ चि_ी देते हो लेकिन मेरे यहाँ से ऐसे ही निकल जाते हो!!उसने टका सा जवाब दिया-तुम्हारे नाम की आएगी तो दूँगा नहीं क्या!!मैं बादलों से अगर ये सवाल पूछूँ तो वे शायद यही जवाब देगें। इसलिए हिम्मत नहीं होती है।
अखबारों में रोज छप रहा है कि पानी बचाओ। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि जब है ही नहीं तो  बचाएँ क्या और कैसे। सारे लोग चर्चा में पानी-पानी कर रहे हैं। मेहमान आए तो पानी-चाय, नेता आए तो पानी-हाय, लड़का आए उछल के नहाय, लड़की आए तो गगरी उठा के जाय। कवि रहीम होते तो लिखते कि- रहिमन पानी प्रेम का, मत ढोलो छलकाए, ढोले से न मिले, मिले मैला पड़  जाय।नलों, टँकियों, बाल्टियों के अलावा सब तरफ पानी- पानी की पुकार। ऐसे में बाबा आ गए पहुँचे हुए तो उनसे पानी के अलावा कुछ और तो पूछा नहीं जा सकता था।
बाबा ये बताइए कि आगे पानी का कैसा क्या रहेगा?’ एक मुरझाये मनी प्लांट ने पूछा।
बाबा अभी भी पँचतैल में झाँक रहे हैं। ऐसे जैसे कि आजकल हर कोई अपने स्मार्ट फोन में झाँकता रहता है। बोले- अभी का तो नहीं पंद्रह साल बाद का दिख रहा है ‘..... कहो तो बताऊँ ?’ जवाब में एक साथ कई आवाजें आई- बताओ बाबा।
बाबा ने सुट्टे की तरह सन्नाटे का आनंद लिया और बोले- मुझे दिख रहा है, साफ साफ दिख रहा है। शनिवार का दिन है, माँगने वाले घूम रहे हैं कि चढ़ाओ शनि महाराज को पानी। .... लोग कटोरी में दो चम्मच पानी ला कर चढ़ा रहे हैं। डिस्पोजेबल कपड़ों का प्रचलन हो गया है। नहाने की परंपरा समाप्त हो गई है। जिस तरह आम आदमी शादी के एक मात्र अवसर पर सूट पहन लेता है उसी तरह घुड़चढ़ी से पहले दूल्हे को ढ़ाई लीटर पानी से स्नान कराने विधान बन गया है। फिल्मों से नायिकाओं के स्नान दृष्य बंद हो गए हैं, क्योंकि इससे फिल्म का बजट बढ़ जाता है। लोग बाथरूम सीन वाली पुरानी फिल्मों पर टूटे पड़ रहे हैं। टायलेट में फ्लश सिस्टन की जगह पोटली सिस्टम प्रचलित हो गया है। मंजन-कुल्ले के लिए भी नया ड्राय सिस्टम है जो प्रचलन में आ गया है। देश के सबसे अमीर खंबानी बंधु रोजाना दो-तीन बार नहा कर ब्रेकिंग न्यूज में छा जाते हैं। मेहमानों का सत्कार काफी बाइट से हो रहा है। केवल अमीर घरों में बर्तन-पोछा होता है। जिनके पास आधार कार्ड हैं उन्हें प्रति दिन एक-दो लीटर पानी मिल रहा है। विज्ञापन छप रहे हैं कि पाँच हजार की खरीदी पर एक लीटर पानी मुफ्त दिया जायेगा. ......
बस करो बाबा, अब रुलाओगे क्या?!’ एक आवाज आई ।
कुछ अच्छा नहीं देख सकते क्या बाबा ...!!दूसरी आवाज आई।
बाबा बोले- मैं वही देख रहा हूँ जो तुम बना रहे हो।  कुछ अच्छा देखना चाहते हो तो उसके लिए अभी से कुछ अच्छा करना शुरू करो..... पानी और वोट को बहुत सावधानी से खर्च करना सीखो लोगों।

लेखक परिचय- जवाहर चौधरी- जन्म -11 फरवरी 1952 / इन्दौर - म.प्र., शिक्षा - एम.ए., पी-एच.डी., ; समाजशास्त्र , लेखन- मुख्य रूप से व्यंग्य लेखन, कहानियां व लेख, कार्टूनकारी भी, प्रकाशन- प्राय: सभी हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में लेख व रचनाओं  का  सतत् प्रकाशन, रेडियो-दूरदर्शन पर पाठ , पुस्तकें- आठ व्यंग्य संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक लघुकथा संग्रह, एक नाटक, दो उपन्यास। प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान -1- म.प्र. साहित्य परिषद् का पहला शरद जोशी पुरस्कारकृति सूखे का मंगलगानके लिये- 1993, 2- कादम्बिनी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय प्रतियोगिता में व्यंग्य रचना  उच्चशिक्षा का अंडरवर्ड को द्वितीय पुरस्कार - 1992, 3- माणिक वर्मा व्यंग्य सम्मान- 2011 भोपाल, 4- एक लाख ग्यारह हजार रु. राशि के साथ गोपालप्रसाद व्यास व्यंग्यश्री सम्मान-2014- हिन्दी भवन, दिल्ली, सम्पर्क: 16 कौशल्यापुरी, चितावद रोड, इन्दौर- 452001, फोन-09826361533, 0731-2401670, ब्लाग- jawaharchoudhary.blogspot.com, Email- jc.indore@gmail.com

No comments: