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Mar 15, 2016

सदुपयोग

सदुपयोग

- किशोर श्रीवास्तव

डिपार्टमेंट को अधिकतम लाभ पहुँचाने और उसकी बेहतरी के लिए नि:स्वार्थ भावना से कार्य करने के फलस्वरूप मैनेजमेंट कमेटी ने इस वर्ष के पचास हजार रूपये के नकद पुरस्कार हेतु उसके नाम का चयन किया था। पुरस्कार की सूची में अप्रत्याशित रूप से अपना नाम पाकर वह फूला नहीं समाया। अपने कुछ कार्य जो पैसों की किल्लत के चलते वह काफी समय से पूरे नहीं कर पाया था, उन्हें अंजाम तक पहुँचाने का अवसर काफी दिनों बाद उसके हाथ लगा था। अत: वह इन पैसों को व्यर्थ के कामों में न खर्च कर अपने ज़रूरी कामों में लगाकर उनका पूरा सदुपयोग करना चाहता था।
पुरस्कार की राशि मिलने के पश्चात अभी वह पैसों के सदुपयोग की बात सोच ही रहा था कि, गाँव से अचानक माँ का टेलिग्राम आ गया। उसके पिता सख्त बीमार थे। अकेली संतान होने के कारण ऐसे समय में उसका घर पहुँचना अत्यन्त आवश्यक था, अत: टेलिग्राम पाते ही वह बीबी, बच्चों के साथ घर की ओर रवाना हो गया।
घर में फूटी कौड़ी नहीं थी अत: पिता के इलाज़ में उसे ही सारा पैसा खर्च करना पड़ा। महीने भर के अथक परिश्रम और बेहतर इलाज़ से उसके पिता ठीक तो हो गये परन्तु उनके इलाज़ में उसके ईनाम के पचास हजार रुपये स्वाहा हो गए।
पिता के स्वस्थ हो जाने के पश्चात वापस शहर लौटते समय उसे यही बात खाये जा रही थी कि वह अपने ईनाम के रुपयों का सदुपयोग नहीं कर सका था।

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1 comment:

सीमा स्‍मृति said...

अन्‍दर से कई बार यही सोच रहती है पर ऊपर से सेवा का जामा पहन दिया जाता है। अच्‍छी ल्‍घुकथा। बधाई।