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Dec 18, 2012

दो ग़ज़लें

-कृष्णा कुमारी कमसिन

  दिल ही पत्थर  
संग तेरे है रहबर देख 
अब तो जग का मंजर देख।
नभ पर ताला है तो क्या
पिंजरे में ही उड़कर देख।
शोलों पर सोती है ओस
   आकर तो सड़कों पर देख।
   बन बैठे हैं शालिग्राम
   चिकने-चुपड़े पत्थर देख।
   तू भी ध्रुव सा चमकेगा
   तम को चीर निरंतर देख।
   ला छोड़ेंगी साहिल पर
   मौजों से तो कहकर देख।
   पाप न कर भगवान से डर
   बच्चों को मत कुढ़कर देख।
   लिख तो डाले ग्रंथ हज़ार
   ढाई आखर पढ़कर देख।
   ख़ुद से बाहर आ कमसिन
   पीर पराई सहकर देख।
     पीर पराई
उसके बिन बेगाना अपना घर लगता है
अंजाना – सा मुझको आज नगर लगता है।
पल, महीनों – से और घड़ियाँ बरसों – सी गुज़रें
सदियों लम्बा तुम बिन एक प्रहर लगता है।
दिन-दिन बढ़ता देख के उसका दीवानापन
उससे प्रेम जताते भी अब डर लगता है।
मुझमें यूँ उसका खो जाना ठीक नहीं, वो
भूल जाएगा इक दिन अपना घर लगता है।
वो हर फ़न का माहिर शख्स़ है साथी मेरा
यूँ मुझसे जलता हर एक बशर लगता है।
यूँ तो उस पर बलिहारी है तन-मन लेकिन
उसके जुनूँ से थोड़ा-थोड़ा डर लगता है।
उससे जाकर तुम ही कह दो, अरी हवाओ !
उसके बिन अब जीना ही दूभर लगता है।
कितने दर्द छुपे हैं उस की मुक्त हँसी में
मुझको ऐसा जाने क्यूँ अक्सर लगता है।
कहने को तो प्रेम के है बस ढाई आखर
पढ़ने में तो इन को जीवन भर लगता है।
उसकी मूरत है अब मेरे मन-मंदिर में।                  
उसका दर ही अब मुझ को मंदर लगता है।    
प्रेम की आग में  वर्ना बुत वो पिघल ही जाता
कमसिन उसका तो दिल ही पत्थर लगता है।            
                                               
           
लेखक के बारे में- जन्म  09 सितम्बर चेचट, कोटा, (राजस्थान), शिक्षा  एम. ए. , एम. एड. (मेरिट अवार्ड), साहित्य रत्न, आयुर्वेद रत्न, बी.जे.एम.सी (जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक)। विभिन्न राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय पत्र पत्रिकाओं, संकलनों आदि में हजारों रचनाऐं प्रकाशित। कविता, ग़ज़ल और कहानी की कई पुस्तकें प्रकाशित। अनेक सम्मान एवं पुरस्कार। वेबसाइटः-  www.paigaam.tripod.com  पर ग़ज़लें प्रकाशित। संप्रतिः शिक्षिका, रा.उ.मा. विद्यालय, इन्दिरा गॉधी नगर कोटा। सम्पर्कः चिर उत्सव सी368, मोदी होस्टल लार्इन, तलवंडी, कोटा 324005 राजस्थान। फोन:-0744-2405500, मोबाइल: 9829549947

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