- डॉ. शैलजा सक्सेना
हर नया दिन लेकर आता है
एक चुनौती!
ललकारता है सुबह का सूरज…
कि दिन की सड़क पर
आज कितने कदम चलोगे
अपने सपने की दिशा में?
सच बात तो यह है
कि 90% दिन तो मुँह, पेट और
हाथों के नाम ही हो जाता है,
दिमाग और सपनों का नम्बर कब आता है?
बचे 10% में से 8%
जाता है घर और परिवार के नाम,
बचे दो प्रतिशत में से एक प्रतिशत
मैं अपनी थकावट को सहलाते,
शरीर और मन के दर्द की गुफ़ाओं में घूमते
निकाल देती हूँ
तब बचे 1 प्रतिशत को दे पाती हूँ
अपने सपनों को….!
रात गए,
समय के साहूकार को
उस दिन की उपलब्धि बताती हूँ;
चाँद के बिस्तर पर
तारों का बिछौना ओढ़,
इसी में संतुष्टि का उत्सव मनाती हूँ
कि मैं एक प्रतिशत ही सही,
अपने सपनों की तरफ़ तो आती हूँ,
मैं एक प्रतिशत ही सही,
रोज़ अपने सपनों की तरफ़ तो आती हूँ!!
सम्प्रतिः Co- Founding Director- Hindi Writers Guild, Canada.

आशावादी सोच की अभिव्यक्ति लिए सुंदर कविता बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteसुंदर सकारात्मक कविता। आठ/दस प्रतिशत, नब्बे प्रतिशत के बाद भी एक प्रतिशत स्वयं के प्रति जागरूकता रखना आवश्यक है। बधाई !
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