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Nov 2, 2025

दो नवगीतः

 सतीश उपाध्याय 

1. लहर यहाँ भी आएगी

राजहंस पाँखें फैलाओ,

लहर यहाँ भी आएगी 

नमी,जमीं पर  थिरक रही 

हरियल गीत सुनाएगी।


जरा मृदा की खिड़की खोलो 

गर्भ -नीर अकुलाते हैं 

भीतर की ठंडे कम्पन भी

 दहलीजों तक आते हैं ।

 

तुम मधुमासी भाव जगाना

 शीतलता मुस्काएगी 

राजहंस पाँखें फैलाओ 

लहर यहाँ भी आएगी ।

भीतर के भीगे पन्नों में 

बारिश के हस्ताक्षर हैं 

गर्भ में साँसें अभी हरी हैं 

 रिसते  पानी के स्वर हैं।

 

 नीलकंठ बन धीरे-धीरे 

हवा 'तपिश' पी जाएगी 

राजहंस पाँखें फैलाओ,

लहर यहाँ भी आएगी 

 

शापित सारे कालखंड 

जब टुकड़ों में बँट जाएँगे

नैसर्गिक सौंदर्य देख तब 

गीत परिंदे गाएँगे ।

 

निर्वाती फिर यही धरा

 तपोभूमि बन जाएगी

 राजहंस पाँखें फैलाओ 

लहर यहाँ भी आएगी ।

 

बिखरेगी फूलों की खुशबू 

और भ्रमर रसपान करेंगे 

पाषाणों को चूम चूम कर 

जल उसका गुणगान करेंगे।

 

 सारस, बगुले नीड़ बनाना 

मीन मीत बन जाएगी 

राजहंस पाँखें फैलाओ 

लहर यहाँ भी आएगी ।

2. समय करता है जाप

समय नदी की धारा

शोर मचाए

कभी बहे  चुपचाप।


नए परिधान पहन

फूटीं फिर कोपलें

अतीत है धुँधला

वर्तमान में चलें

गतिशील है सपने

उनमें प्रवाह है

उनींदी कलियों को

 सूरज की चाह है।।

 

कदमों की जारी

रहे पदचाप।।

 

झर रहे भीतर

मीठे- से झरने

वक्त चला आया

खालीपन भरने

कैनवास है थिर

रंग  ही बदले हैं

झाँक रहे उजियारे

जो भीतर पले हैं।

 

धड़कन है शीतल

और तन में है ताप।।

 

साँसों में लय है

मन में है ताल

राहों में बिखरे

कितने सवाल

उपवन से फूल का 

 ताज़ा अनुबंध

बाँटेगा दूर तक

 वो अपनी सुगंध।

 

जीवन फूँके शंख

समय करता है जाप।


10 comments:

  1. मन को तारोंताज़ा करने वाला एक बहुत ही सुन्दर गीत... 👏🙏

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  2. बहुत सुंदर गीत हैं!

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  3. Anonymous09 November

    प्यारी कविताएँ....लहर यहाँ भी आएंगी , कविता/गीत बहुत पसंद आई. - रीता प्रसाद

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  4. Nirdesh nidhi09 November

    बहुत सुन्दर नवगीत
    राजहंस 👌👌

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  5. Anonymous09 November

    Bahut hi saral taji hava si kavita bahut Sundar

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  6. Anonymous09 November

    बहुत सुंदर हैं दोनों गीत👍

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  7. दोनो गीत बहुत सुंदर !👌

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  8. दोनों गीत अति सुन्दर।

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  9. Anonymous16 November

    सतीश उपाध्याय जी आपका नवगीत प्रकृति के बहाने मानवीय भावनाओं की गहराई को छूता है। राजहंस, लहर और मृदा जैसे प्रतीक आशा, पुनर्जागरण और भीतरी स्पंदन के रूपक बन जाते हैं। गीत का हिस्सा
    राजहंस पाँखें फैलाओ, लहर यहाँ भी आएगी
    टूटे समय में भी लौटती रोशनी का कितना सुंदर संदेश देता है। सरल भाषा, प्रकृति-संवेग और आशावादी स्वर इन सबके कारण आपका नवगीत संवेदना और सौंदर्य दोनों स्तरों पर अत्यंत प्रभावशाली बन रहा है।
    मैंने दूसरा गीत भी दो बार पढ़ा जो समय के प्रवाह और मन के भीतर होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों को बेहद आत्मीय प्रतीकों में व्यक्त कर रहा है। नदी की धारा” से लेकर भीतर के झरने और कैनवास पर बदले रंगहर बिम्ब जीवन की नूतनता और उर्जा का संकेत देना अद्भुत है। अंतिम पंक्ति जीवन फूँके शंख, समय करता है जाप गीत को अर्थपूर्ण दार्शनिक ऊँचाई देती है।

    हार्दिक शुभकामनायें

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  10. Anonymous19 November

    राज हंस पंख फैलाओ , लहरें यहाँ भी आएँगी सकारात्मक सोच लिए बहुत सुन्दर नवगीत। दूसरे नव गीत में नव प्रतीकों और बिम्ब के माध्यम से सुंदर अभिव्यक्ति है। बधाई । सुदर्शन रत्नाकर

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