मासिक वेब पत्रिका उदंती.com में आप नियमित पढ़ते हैं - शिक्षा • समाज • कला- संस्कृति • पर्यावरण आदि से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर आलेख, और साथ में अनकही • यात्रा वृतांत • संस्मरण • कहानी • कविता • व्यंग्य • लघुकथा • किताबें ... आपकी मौलिक रचनाओं का हमेशा स्वागत है।

Oct 1, 2025

कविताः ज्योति का उत्सव मनाएँ

  - डॉ. शिवजी श्रीवास्तव






इस तरह प्रिय 

ज्योति का उत्सव मनाएँ।


द्वार, देहरी पर बनाकर

अल्पनाएँ,

इंद्रधनु के रंग से

उनको सजाएँ

करें स्वागत-

परिजनों-अभ्यागतों का

लोकमंगल हित करें

शुभ प्रार्थनाएँ।


टाँग लें 

सुंदर कन्दीलें

निज गवाक्षों पर

झरें जिनसे

रोशनी के 

मन्द मृदु निर्झर

देखने को

ज्योति का

यह पर्व अनुपम

गगन के तारे

धरा पर उतर आएँ।


झिलमिलाती 

झूमती-सी

झालरें विद्युत् लड़ी की

जगमगाते दीपकों से

कर रही हों

जुगलबंदी- सी

और फुलझड़ियों से

झरते फूल झर- झर

झर- झरर

बाँचते हों ज्यों कथा

उल्लास की।


मनहरण इस रागिनी के

साथ हम भी

चलो कोई गीत सुमधुर

गुनगुनाएँ

दूर करने को सघन तम

इस धरा का

एक दीपक नेह का

हम भी जलाएँ।

10 comments:

  1. Anonymous06 October

    एक दीपक नेह का जलाएँ- बहुत सुन्दर भाव। बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर

    ReplyDelete
  2. दूर करने को तम ..एक दीपक जलाए हम.....

    ReplyDelete
  3. Bahut pyari kavita

    ReplyDelete
  4. डॉ सुनीता वर्मा16 October

    बहुत सुंदर रचना है दीपावली का त्योहार इसी तरह हम मनाते आ रहे हैं ।यह कविता सब कुछ याद दिला गई ।

    ReplyDelete
  5. Anonymous16 October

    बहुत सुन्दर रचना !!

    ReplyDelete
  6. हार्दिक धन्यवाद 🙏

    ReplyDelete