- डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
इस तरह प्रिय
ज्योति का उत्सव मनाएँ।
द्वार, देहरी पर बनाकर
अल्पनाएँ,
इंद्रधनु के रंग से
उनको सजाएँ
करें स्वागत-
परिजनों-अभ्यागतों का
लोकमंगल हित करें
शुभ प्रार्थनाएँ।
टाँग लें
सुंदर कन्दीलें
निज गवाक्षों पर
झरें जिनसे
रोशनी के
मन्द मृदु निर्झर
देखने को
ज्योति का
यह पर्व अनुपम
गगन के तारे
धरा पर उतर आएँ।
झिलमिलाती
झूमती-सी
झालरें विद्युत् लड़ी की
जगमगाते दीपकों से
कर रही हों
जुगलबंदी- सी
और फुलझड़ियों से
झरते फूल झर- झर
झर- झरर
बाँचते हों ज्यों कथा
उल्लास की।
मनहरण इस रागिनी के
साथ हम भी
चलो कोई गीत सुमधुर
गुनगुनाएँ
दूर करने को सघन तम
इस धरा का
एक दीपक नेह का
हम भी जलाएँ।

एक दीपक नेह का जलाएँ- बहुत सुन्दर भाव। बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteदूर करने को तम ..एक दीपक जलाए हम.....
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏
DeleteBahut pyari kavita
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत सुंदर रचना है दीपावली का त्योहार इसी तरह हम मनाते आ रहे हैं ।यह कविता सब कुछ याद दिला गई ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏
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