उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Oct 1, 2025

कविताः ज्योति का उत्सव मनाएँ

  - डॉ. शिवजी श्रीवास्तव






इस तरह प्रिय 

ज्योति का उत्सव मनाएँ।


द्वार, देहरी पर बनाकर

अल्पनाएँ,

इंद्रधनु के रंग से

उनको सजाएँ

करें स्वागत-

परिजनों-अभ्यागतों का

लोकमंगल हित करें

शुभ प्रार्थनाएँ।


टाँग लें 

सुंदर कन्दीलें

निज गवाक्षों पर

झरें जिनसे

रोशनी के 

मन्द मृदु निर्झर

देखने को

ज्योति का

यह पर्व अनुपम

गगन के तारे

धरा पर उतर आएँ।


झिलमिलाती 

झूमती-सी

झालरें विद्युत् लड़ी की

जगमगाते दीपकों से

कर रही हों

जुगलबंदी- सी

और फुलझड़ियों से

झरते फूल झर- झर

झर- झरर

बाँचते हों ज्यों कथा

उल्लास की।


मनहरण इस रागिनी के

साथ हम भी

चलो कोई गीत सुमधुर

गुनगुनाएँ

दूर करने को सघन तम

इस धरा का

एक दीपक नेह का

हम भी जलाएँ।

1 comment:

  1. Anonymous06 October

    एक दीपक नेह का जलाएँ- बहुत सुन्दर भाव। बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर

    ReplyDelete