- छवि निगम
1
नहीं चाहिए
नाल
न लगाम
न ही तुम।
2
जीवन क्या
खोजते रहना
सही कॉन्टैक्ट नम्बर ऊपर वाले का
बस ।
3
रिश्ते आभासी मौजूदगी बॉयोमैट्रिक
आजकल तो
सिम गया
याददाश्त गई।
4
सागर और धरती घुटते हैं
ऊपर से शांत दिखें चाहे
भूकम्प को तरसते हैं
सुनामी को तकते हैं ।
5
फेस मास्क बरकरार हैं
दूरियाँ दरम्यान हैं
अपने इस दौर की
अजनबियत ही पहचान है ।
6
कैनवास नहीं
हर कोई यहाँ पर
ब्लैकहोल भी हैं
अपने रंग बचाना तुम ।
7
जुड़े
तो कहानी,
टूटे
तो कविता ।
8
रात का मुलम्मा
उतार फेंकता है
दिन
बड़ा संगदिल हुआ करता है
9
अगर डरो,
तो मौन से डरो
कि भीतर के शोर का
यही चरम है
10
विश्वासघात
और ज़िन्दगी,
आपस में
व्युतक्रमानुपाती
बहुत सुंदर कविताएँ। बधाई॥ सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteनवीन प्रतीकों के माध्यम से सामयिक संदर्भ की प्रभावी रचनाएँ। हार्दिक बधाई
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