1
काँटों को लंबी जिंदगी, फूलों को चंद साँस।
क्या-क्या निराले खेल हैं, परवरदिगार के।
2
सुख से अपनी भेंट रही यूँ, जैसे चलती गाड़ी में।
प्यारी सूरत दिखकर कोई, हो ओझल बाबा।
3
यूँ अपना किरदार रहे, दुख दर्द हो या संताप कोई
बच्चों को कंधों पर लादे, घूमे जैसे बाप कोई
4.
आने को तो दोनों आते हैं जीवन की मुँडेरों पर ।
दु:ख अरसे तक बैठे रहते, सुख जल्दी उड़ जाते हैं।
No comments:
Post a Comment