- स्वाति बरनवाल
प्यारी लड़की
प्यारी लड़की!
आकाश में उड़ो
धरती पे उछलो
सपनों में रंग भरो।
प्यारी लड़की!
फूलों- सी महको
हवा- सी इतराओ
तितली की मानिंद
मस्त रहो!
किताबों पर विश्वास और
खुद में हौसला रखो।
प्यारी लड़की।
थोड़ी- सी जिद्दी,
थोड़ी- सी अड़ियल
थोड़ी- सी दुराग्रही
और थोड़ी- सी मतांध बनो।
प्यारी लड़की!
इस मतलबी दुनिया में
तुमको ढेर सारे स्वार्थी,
चापलूस और खुदगर्ज लोग मिलेंगे
तुम्हारा उनसे भी सामना होगा।
प्यारी लड़की!
इस दुनिया में तुम
किसी विशेष उद्देश्य से आई हो।
इससे पहले कि यह दुनिया तुम्हें
अपने उसूलों के साथ जीना सिखा दे..
तुम दुनिया पलट दो।
गिरी तो रोई, उठी तो लड़खड़ाई
चलने लगी तो फिर
ठोकर खाई
गिरी, उठी, सँभली
फिर चलने लगी।
वक्त- बेवक्त चंचलता जाती रही
और गंभीरता आती रही
यूँ कि थोड़ी देर रुक जाने से
जीने में आ जाती कोताही
और माथे मढ़ देती लापरवाही
का तमगा।
यूँ कि
उसके पहले ही
अपने ऊपर चढ़ा लिया जाए
कोई ठोस आवरण
और बचा जा सके
उम्र की हर सर्दी,
गर्मी और बरसात से
जिससे कभी होती थी
पैरों में थिरकन
बढ़ जाती थी दिल की धड़कन
और देह में सिहरन!
अब जब भी
गिरने को होती हूँ
तजुर्बा हाथ थाम
गिरने से बचा लेता है
बार बार, हर बार।
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