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Oct 1, 2024

प्रेरकः एक सीख ऐसी भी

  - सुरभि डागर

अनुराधा बड़े उमंग से श्राद्ध कर रही थी । ससुर जी के लिए खीर  तो जरूर बनाऊँगी, उड़द- चावल, बूरा सारी चीजें ससुर जी की पसंद की बन रहीं थीं । पंडित जी को  भोजन कराना है। जाओ, बुलाकर ले आओ, साथ ही कपड़े भी बाहर निकालकर रख दो। दक्षिणा भी ऊपर ही रख देना कपड़ों के ।

मैं सोच रही हूँ- पंडित जी को गर्म रजाई और बर्तन भी दे दूँगी, ताकि पूज्य पिताजी को इसका लाभ प्राप्त हो। उनकी आत्मा भी संतुष्ट हो। उनको देखकर भी प्रसन्नता होगी । और वो दुआएँ देंगे।

सासू माँ चारपाई पर बैठी, सब कुछ मौन होकर देख रही थी। राजेश बहुत उलझन में था; पर बोल कुछ नहीं रहा था। 

पंडित जी को बुला लाया और कोने में खड़ा हो गया। पंडित जी के लिए आसन लगा दिया। पंडित जी ने कहा- रसोई से महक बाहर तक आ रही है 

अनुराधा ने कहा- पिताजी की पसंद की सब चीजें बनाई हैं ।

पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले- माता जी को चाय मिली या नहीं?  ये तो चुप चारपाई पर बैठी हैं।

अरे पंडित! जी चूल्हा जूठा हो जाता, यदि कोई कुछ खा लेता।  पहले भोजन पिताजी के नाम का है।

पंडित जी पता नहीं क्या सोचकर चुप हो गए। इतने में भोजन की थाली आ गई। भर पेट भोजन किया । और उठ खड़े हुए। ‌ बोले- अब आज्ञा दो ।

 अनुराधा ने पंडित जी को कपड़े बर्तन, रुपये  और गर्म- ठंडे विस्तर दिए- बोली आशू के पापा पंडित जी का सामान पहुँचवा देना । 

राजेश ने अच्छा कहकर फिर मौन धारण कर लिया।

अनुराधा ने कहा- पंडित जी, दुआएँ देकर जाओ हमें। हमारे पिता जी जहाँ हो, खुश हों।

अब तो पंडित जी बोल उठे- दुआएँ तो नहीं; पर एक सीख जरूर दूँगा। जब पिताजी थे, तब उनको पकवान नहीं खिलाएँ। अब माता जी दुःखी हैं। न तुम दोनों इनकी इज्जत करते हो, न समय पर भोजन देते हो। अभी चाय तक नहीं मिली इनको । बिस्तर भी फटा पुराना है।  बर्तन भी अलग कर दिए हैं, बाद में माता जी का भी श्राद्ध इतनी ही प्रसन्नता से करना। जो हुआ, सो हुआ। अब माँ का ध्यान रख लो, तो पिताजी तो‌ आप ही खुश हो जाएँगे, दुआएँ भी देंगें और मैं भी दुआओं से झोली भर दूँगा। फिर करना पिताजी का श्राद्ध और मुझे बुलाना।

 माता जी के नयन गीले हो गए। अपनी साड़ी के पल्लू से आँसू पोछने‌ लगीं।

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