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Oct 1, 2023

जीवन दर्शनः साधारण से असाधारण की यात्रा

 - विजय जोशी

    काम अपने आप में एक संपूर्ण सत्य एवं तथ्य है तथा यह कभी भी छोटा या बड़ा नहीं होता। छोटे से छोटा काम भी यदि निष्ठापूर्वक किया गया हो तो बड़े से बड़े कार्य के समतुल्य है। यही , तो  सुप्रसिद्ध सिंफनी वादक बीथोवन ने भी कहा है कि सड़क पर झाड़ू लगाने वाला भी यदि अपना काम ईमानदारी से कर रहा है , तो  वह हर एक से श्रेष्ठ है। यह तो हुई पहली बात।

      दूसरी यह कि यदि साधारण काम को भी सेवा मानकर, एक संपूर्ण समष्टिगत यात्रा समझकर संपन्न किया जाए , तो  वह असाधारण हो जाता है। इसे ही तो मेक ए डिफरेंस भी कहा गया है।

  एक आदमी ने एक पेंटर को बुलाया तथा अपने घर और नाव को दिखाकर कहा कि इसे पेंट कर दो।

    उस पेंटर ने पेंट लेकर उस नाव को पेंट कर दिया लाल रंग से जैसा कि नाव का मालिक चाहता था फिर पेंटर ने अपने पैसे लिए और चला गया।

    अगले दिन उस पेंटर के घर पर नाव का मालिक पहुंच गया एवं उसे एक बहुत बड़ी राशि का चेक प्रदान किया। पेंटर भौंचक्का हो गया और पूछा : ये किस बात के पैसे हैं। मेरे पैसे तो कल ही आपने दे दिये थे।

   मालिक ने कहा : ये पेंट के पैसे नहीं हैं, बल्कि उस नाव में जो छेद था उसे रिपेयर करने का छोटा सा प्रयास मात्र है।

   पेंटर ने कहा : अरे साहब वह तो एक छोटा सा छेद मात्र था, सो मैंने उसे बंद कर दिया। उस छोटे से छेद के लिए  इतना पैसा मुझे ठीक नहीं लग रहा। 

    मालिक ने कहा : दोस्त तुम नहीं समझे मेरे बात। अच्छा अब मैं सब कुछ विस्तार से समझाता हूँ। जब मैंने तुम्हें पेंट करने के लिए कहा , तो  जल्दबाजी में ये बताना भूल गया कि नाव में एक छेद है उसे भी रिपेयर कर देना। और जब पेंट सूख गया , तो  मेरे दोनों बच्चे उस नाव को लेकर नौकायन पर निकल गए।

    मैं उस समय घर पर नहीं था, लेकिन जब लौटकर आया और अपनी पत्नी से सुना कि बच्चे नाव लेकर नौकायन पर निकल गए हैं , तो  मैं बदहवास हो गया, क्योंकि मुझे याद आ गया कि नाव में तो छेद है। मैं गिरता पड़ता उस तरफ भागा,  जिस तरफ मेरे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी ही दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए,  जो सकुशल वापस आ रहे थे।

    मालिक ने अपनी बात का क्रम जारी रखा : अब तुम मेरे खुशी और प्रसन्नता का कारण खुद समझ सकते हो। फिर मैंने चेक किया, तो  देखा कि मेरे बिना कहे ही तुम उस छेद को रिपेयर कर चुके हो। तो मेरे दोस्त उस महान कार्य के लिए , तो  ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं। मेरी औकात नहीं कि उस कार्य के बदले मैं तुम्हें ठीक ठाक पैसे दे पाऊँ।

   बात का सार बहुत ही संक्षिप्त है और वह यह कि जीवन में जब भी भलाई का कार्य करने का मौका मिले , तो  तुरंत कर देना चाहिए, भले ही वह बहुत ही छोटा कार्य ही क्यों न हो, क्योंकि कभी कभी छोटा कार्य भी किसी के लिये अमूल्य हो सकता है।

 अच्छे काम का अच्छा और बुरे का बुरा अंजाम होता है।

वो ज़िंदगी में कभी हारता नहीं, जो सच्चा इंसान होता है।

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
 मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

43 comments:

Kishore Purswani said...

अत्यंत प्रेरणादायक यदि हम सब की सोच ऐसी हो जाये तो यह संसार ही स्वर्ग बन जाएगा

Anonymous said...

No

C. Ananda said...

Excellent taught provoking article sirji. Thanks for sharing

देवेन्द्र जोशी said...

गीता का सार भी यही हैl पूरे समर्पण से बिना फल की इच्छा से किया कार्य ही सर्वश्रेष्ठ है l आपने एक दृष्टांत द्वारा इस गूढ रहस्य को सरलता से समझा दिया हैl आपका अभिनन्दन.

प्रेम चंद गुप्ता said...

फ्रॉस्ट एंड सुलिवन की एक ट्रेनिंग के दौरान मैं एक नए शब्दावली से परिचित हुआ "Over quality". जिसका भाव यह था कि यदि कोई उत्पाद अथवा सेवा की प्रतिभूति 5 वर्ष की हैं और वह उत्पाद 10 वर्ष तक बिना किसी बाधा के चलता है तो यह अति गुणवत्ता है। इस अति गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए जो अधिक वस्तु या श्रम लगाया जाता है वह लाभांश को कम करता है। यह एक अव्यावसायिक उपक्रम है।
इस तरह आज कंपनियां छोटे छोटे छेद जानबूझकर छोड़ दे रही हैं।
कामगार भी इसी विचारधारा का अनुसरण कर रहे हैं।
इस प्रकार के आलेख इस प्रवृत्ति पर विराम लगाने में सहायक सिद्ध होंगे।
बहुत बहुत साधुवाद।

Anonymous said...

हमेशा एक छोटी शुरुआत एक बड़े कार्य की नीव होती।कहानी बड़ी सरल व सारयुक्त है।
डॉ नागेन्द्र त्रिपाठी

Hemant Borkar said...

पिताश्री हमेशा कि तरह अत्यंत सरल शब्दों में कर्म के बारे में समझाया। पिताश्री को सादर नमस्कार व चरण स्पर्श 🙏

Mandwee Singh said...

बहुत ही सार्थक ,रोचक और सारगर्भित आलेख।इस आलेख को पढ़कर मुझे बचपन की एक बात याद आ रही है।एक बार की बात है परिवार के सभी सदस्य रात का भोजन कर रहे थे तभी बिजली चली गई। मैने चुपचाप उठकर नियत स्थान से माचिस और लैंप उठाकर उसे जला दिया।चूंकि अंधेरा गहरा था इसलिए यह साधारण काम भी विशेष था।मेरे पिताजी ने बताया कि यह भी एक पूजा है।कोई भी काम समर्पण और निष्ठा से करो तो वह भगवान की पूजा से
श्रेष्ठ माना जाता है।आज इस आलेख ने पिताजी की सीख और उनकी याद दोनों को.......।
वर्तमान समय में जहां पर भी मुल्लमे पर मुलम्मा चढ़ाकर कम मेहनत में ज्यादा प्रसिद्धि की जो होड़ मची हुई है इस आलेख के आलोक में परिवर्तन की अपेक्षा है।
सादर प्रणाम एवम् साधुवाद आदरणीय।

Anonymous said...

काम अपना समझ कर करें तो खुद को भी अच्छा लगता है और सामने वाले को भी। जब हम मन से काम करेंगे तो वह छेद निगाहों से बच नहीं पाएगा। बात मनोवृति की है, जो हमें पहले प्रसन्नता देती है, जो जीवन में मायने रखता है।

Sk Agrawal said...

बहुत-बहुत प्रेरणादायक लेख, जाने अनजाने सबकी सहायता करना तो कोई आपसे सीखे, साधुवाद सरल भाषा में अच्छा विचार

Vijendra Singh Bhadauria said...

अति सरल शब्दों में बहुत बड़ी बात समझा दी सर
धन्यवाद

Anonymous said...

L K Harwani
Excellent story for everyone to follow

Anonymous said...

सार्थक आलेख। साधारण गुणों का होना व्यक्ति को असाधारण बना देता है। आज सभी असाधारण होने की चाह मैं साधारण गुणों से दूर होते जा रहे हैं।

Anonymous said...

सरल शब्दों में बहुत बड़ी बात,प्रेरणादायक , सब की सोच ऐसी हो जाये तो संसार स्वर्ग बन जाएगा

Reply

MANISH GOGIA said...

Highly inspiring story

Khalil aslam qureshi said...

वाह सर वाह कितने सरल शब्दों मे कितनी बडी बात आप ने समझा दी वास्तव मे वह छोटा सा किया गया कार्य कितना महत्वपूर्ण हे स्वतः उसका अंदाज़ा लगाया जा सकता हे
अति उत्तम आदरणीय

Dil se Dilo tak said...

काम को पूरे समर्पण व बेहतरीन या परफेक्ट करने की चाह ही किसी को अच्छा कर्मचारी कहला सकने की योग्यता देती है 🙏🏼
बहुत ही अच्छे उदाहरण से समझाया आपने.. बधाई 💐

Dil se Dilo tak said...

प्रणाम स्वीकारें सर... रजनीकांत चौबे 🙏🏼

विजय जोशी said...

किशोर भाई, सही सोच ही तो है सार्थक जीवन का सरलतम सूत्र। हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

Res. AnandaJi, Heartfelt gratitude for Your encouragement. Kind regards

Mahesh said...

सर,
अति उत्तम लेख। अच्छे काम का अच्छा और बुरे का बुरा अंजाम होता है।

वो ज़िंदगी में कभी हारता नहीं, जो सच्चा इंसान होता है।

विजय जोशी said...

आदरणीय,
गीता ही तो जीवन संहिता है। निष्काम कर्म तो श्रेष्ठतम समाधान है जीवन में हर कठिनाई से समर्पण के साथ पार पाने का। हार्दिक आभार सहित सादर

विजय जोशी said...

डॉ. नागेन्द्र जी, हार्दिक आभार सहित सादर

विजय जोशी said...

आ. गुप्ताजी, जिस दिन कार्य को सेवा मान लिया जाएगा, सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा। श्रम का सेवा में संविलियन ही एकमात्र समाधन है। हार्दिक आभार सहित सादर

विजय जोशी said...

डॉ. श्रीकृष्ण अग्रवाल, हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार मित्र

विजय जोशी said...

आदरणीया सीमा जी, सही कहा आपने। हार्दिक आभार सहित सादर

विजय जोशी said...

प्रिय भाई महेश, हार्दिक आभार। सस्नेह

विजय जोशी said...

प्रिय भाई असलम, बिल्कुल सही। श्रम से बड़ा कोई कर्म नहीं, जिसे साबित किया आपने सेवा काल में। हार्दिक आभार। सस्नेह

विजय जोशी said...

प्रिय भाई लक्ष्मण, हार्दिक आभार। सस्नेह

विजय जोशी said...

प्रिय हेमंत, हार्दिक आभार। सस्नेह

Anonymous said...

बिलकुल सही कहा आपने....work with worship, dedication and without any greed will give satisfaction to all concerned.....कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.....Jjayesh

चन्द्रकला said...

अत्यंत प्रेरणादायक

विजय जोशी said...

Dear Jayesh, Thanks very very much.

विजय जोशी said...

प्रिय रजनीकांत, तुम तो स्वयं में निष्कामकर्म के प्रत्यक्ष प्रमाण हो। सो हार्दिक बधाई। सस्नेह

विजय जोशी said...

Dear Manish, Thanks very very much.

विजय जोशी said...

आदरणीया, एक बात की खुशी हुई कि मेरे विनम्र योगदान ने आपको बचपन की देहलीज पर पहुंचा दिया। अच्छे काम सबसे मधुर यादें हैं तो मन में रच बस जाती हैं। आलेख आपकी पसंदगी का सबब बना सो सार्थक हो गया। हार्दिक आभार सहित सस्नेह

सुरेश कासलीवाल said...

Work is worship.हर कार्य को पूजा समझकर करने की प्रेरणा आपके लेख से मिलती है। सुंदर विचार, बढ़िया दृष्टांत।

Vijay joshi said...

हार्दिक आभार सहित सादर

Anonymous said...

अपने कार्य मे पूर्ण निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी सच मे ईश्वर आराधना है । आपको साधुवाद सर
D C Bhavsar

Sharad Jaiswal said...

अत्यंत प्रेरणादाई एवं अनुकरणीय आलेख।

किसी ने ठीक ही कहा है कि
असाधारण लोग असाधारण काम नही करते है,
बल्की वो साधारण काम को ही असाधारण तरीके से करके उसमे अपनी अमिट छाप छोड़ देते है ।

विजय जोशी said...

आदरणीय भावसार जी, हार्दिक आभार सहित साभार

विजय जोशी said...

प्रिय शरद, बिल्कुल सही कहा। श्रम से बड़ा कोई कर्म नहीं और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं। देरी से उत्तर हेतु खेद सहित। सस्नेह