साँझ हो गई (कविता): रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, पृष्ठ:120/-, मूल्य: रुपये 300/-, वर्ष: 2022, प्रकाशक :अयन प्रकाशन, जे -19/ 39 , राजापुरी, उत्तम नगर,नई दिल्ली-110059
चर्चित- समर्पित शिक्षाशास्त्री, अकादमिक- व्यावहारिक भाषाशास्त्री, सिद्ध-समर्थ साहित्यकार, सरल-तरल शैलीकार एवं बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न रचनाकार, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, गद्य-पद्य में अपने दर्जनों ग्रन्थों के साथ-साथ, प्रथमतः और अन्ततः, एक सुकवि ही हैं । उनकी सद्य-प्रकाशित कविता-पुस्तक है - ‘साँझ हो गई’, जिसमें 45 कविताएँ , 208 दोहे, 47 मुक्तक, 32 द्विपदियाँ, 15 चतुष्पदियाँ, 06 षट्पदियाँ और 02 अष्टपदियाँ संगृहीत हैं । ये सभी 355 रचनाएँ प्रेम-भावना, आध्यात्मिक-चिन्तन, पर्यावरण-संरक्षण, देशानुराग और मानवीय सम्बन्धों की दरकन आदि पर आधारित हैं।
अधिकतर कविताएँ प्रेम-संवलित हैं। ‘रसिक चाँद’ में यदि प्रेम में सर्वस्व-समर्पण की आतुरता है, तो ‘मन की किताब पर’ प्रेमिका को सदा-सर्वदा के लिए अंकित करने की उत्कट अभिलाषा है। ‘सुधा-कलश तुम!’ में यदि अव्यक्त विरह-वेदना है, तो ‘लौटते कभी नहीं’ में ‘फिसले हाथ से जो छिन’ को ठुकराकर सुकून की तलाश है। ‘मैं तो केवल तुम्हें वरूँ’ में दार्शनिक भाव-बोध की झलक द्रष्टव्य है, तो ‘आया हूँ मैं द्वार तुम्हारे’ में परमात्मा से प्रियतमा को सुखी बनाये रखने की विनती की गई है ।
‘बाँट लेना’ में स्वार्थी रिश्तों की झलक साफ दिखाई देती है, ‘हँसी छीन ली’ में मित्रता के विश्वासघात का दर्द छलक रहा है । ‘वे सब तो बेगाने निकले’ तथा ‘न किसी के तोड़े टूटेंगे’ काव्यांशों में कवि का चट्टान-सदृश अडिग आत्मबल और जीवट रूपायित हुआ है। कवि को यह जानकर परम संतोष है कि क्या हुआ? यदि स्वार्थी लोग छूटे हैं, तो स्थायी मित्र बने भी तो हैं ।
संग्रह-शीर्षक कविता ‘साँझ हो गई’ में ‘कण्ठ स्वाति बूँद को कलपे, बाट जोहे’ कहकर प्रियतमा की अंतहीन, किंतु आशावादी, प्रतीक्षा प्रतिपादित हुई है। ‘मेरे आगे हार गई थी’ एक बेहतरीन कविता है, जो अपनी उद्यमिता से हार को जीत में और निराशा को आशा में बदल देने की अमोघ प्रेरणा प्रदान करती है। कुल मिलाकर, प्रस्तुत काव्य-संग्रह की सभी रचनाएँ सुगन्धित भावनाओं की सादगी, सौम्यता और संवेदनशीलता से ओत-प्रोत हैं ।
‘हिमांशु’ जी एक जागरूक और सजग साहित्यकार हैं। वे जानते हैं कि समय से पहले और समय बीत जाने के बाद कुछ प्राप्त नहीं होता। हमारे चिन्तनशील और संवेदनशील सुकवि ‘हिमांशु’ जी ने युवा-पीढ़ी को यह कहकर अपनी दिशा तय करने का संदेश दिया है कि आप मिलावटी रिश्तों की धूल झाड़कर और एक तरफ़ा प्रेम से ध्यान हटाकर, रिश्तों के बाज़ार में अपनी पगडण्डी स्वयं तय करें; तभी सुकून मिलेगा, मंज़िल मिलेगी ।
सचमुच पठनीय, मननीय और संग्रहणीय काव्य-संग्रह ‘साँझ हो गई’ की भव्य प्रस्तुति के लिए ‘हिमांशु’ जी को हार्दिक बधाई ।
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