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Aug 1, 2023

गीतः हिंद के सिपाही सा

- बृज राज किशोर ‘राहगीर’

राष्ट्रभक्ति सीने में, लक्ष्यबेध है दृग में।

हिंद के सिपाही सा वीर कौन है जग में।।


चट्टानी देहों में साहस के जल-प्रपात।

आँधियाँ इरादों में, बाँहों में चक्रवात।

दामिनियाँ दौड़ रहीं शेरों की रग-रग में।

हिंद के सिपाही सा वीर कौन है जग में।।


ऊँचे हिमशिखरों पर, झुलसाते मरुथल में।

शौर्य-कथा लिखते हैं बारूदी हलचल में।

इंच-इंच सीमा को नाप रहे हैं डग में।

हिंद के सिपाही सा वीर कौन है जग में।।


काँप उठें शत्रु-हृदय, गूँजें जब युद्धघोष।

पूरा कंठस्थ इन्हें बलिदानी शब्दकोश।

ठोकर से चूर करें, बाधा जो हो पग में।

हिंद के सिपाही सा वीर कौन है जग में।।


प्राणों से अधिक प्रेम, माटी के कण-कण से।

समरांगन में उतरें महाकाल के गण से।

रणचण्डी विजयमाल लिए खड़ी है मग में।

हिंद के सिपाही सा वीर कौन है जग में।।


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