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Mar 1, 2023

कविताः 8 मार्च महिला दिवस- सोई हुई औरतें

 - डॉ. शिप्रा मिश्रा

सोई हुई औरतें

मधुमक्खियों की तरह

शहद भी रखती हैं

और डंक भी

कभी भूल कर भी मत देखना

उनकी दहलीज पर

बहुत फर्क है

तुममें और उनमें

तुम खड़े रहते हो

अपने चौगान पर

लेकिन रख नहीं पाते

उसे सुरक्षित

औरतें घर की अँधेरी

सुराखों से भी

परख लेती हैं

किसी की लोलुप निगाहें

इन्हें बहुत भाती हैं

टहटह लाल सेंदूर

इन्हें लुभाती हैं

रंग- बिरंगी चूडियाँ

पर..

भूलना मत

इनकी आँखों में

एक आग भी होती है

जो जला सकती है

पल भर में

तुम्हारा वजूद

1 comment:

शिवजी श्रीवास्तव said...

इनकी आँखों में/एक आग भी होती है/जो जला सकती है/पल भर में/तुम्हारा वजूद...स्त्री-अस्मिता की सशक्त रचना।बधाई डॉ. शिप्रा जी