1.
आते-आते फिर आई है याद पुरानी उसकी
भूला-बिसरा इक तसव्वुर, इक कहानी उसकी।
इक वो
मंजर गुल-गुंचों का, इक है काँटों वाला
लेकिन हर मंजर में है क़ायम इक रवानी उसकी ।
याद नहीं, फ़रियाद नहीं
दीदार तलक को तरसूँ
भूल गया
कि है मीरा-सी इक दीवानी उसकी ।
एक समंदर उमड़ा पड़ता जैसे दिल के अंदर
आज बहा न दे आँखों से ,इक नादानी उसकी ।
फूलों पर शबनम फैली है या फिर रात के आँसू
ग़फ़लत में हूँ स्मित या आई याद पुरानी उसकी ।
2.
न तो मंज़िल की ख़बर और न हमसफ़र का पता
दश्त-ए-ज़ुल्मत में कहाँ पाएँ तेरे घर का पता ।
मैं तो मंदिर की तरफ़ जा रहा था ऐ साक़ी
न जाने किसने बताया है तेरे दर का पता ।
मेरे अपने ही तग़ाफ़ुल से देखते हैं मुझे
न उनको ग़म की ख़बर न है दिल-जिगर का पता ।
वो हमने जिनकी परस्तिश की जिनको रब माना
वो हमको देते हैं रुसवाई के शहर का पता ।
ऐ मेरे नूर-ए-नज़र तुझपे दो जहां क़ुर्बां
क्यों तूने स्मित को दिया फिर से चश्म-ए-तर का
पता ।
सम्पर्कः डी 136, गली न. 5, गणेशनगर पांडवनगर कॉम्प्लेक्स, दिल्ली, मो. 8376836119, dr.artismit@gmail.com, www.smitarti.wordpress.com
No comments:
Post a Comment