गुजरात के वलसाड़ ज़िले में वरली नदी के किनारे
संजान नामक एक छोटे-से गांव में आम का एक पेड़ है जो चलता है। लगभग 1200 वर्ष
पुराना यह पेड़ समय-समय पर अपना स्थान बदलता रहता है। इसीलिए इसे चलता या टहलता आम
(वाकिंग मेंगो) कहते हैं। गुजराती लोग इसे चलतो-आम्बो कहते हैं। इसे गुजरात का
सबसे प्राचीन पेड़ बताया गया है।
वर्ष 1980 के आसपास पुणे के डेकन कॉलेज के डॉ.
अशोक मराठे ने इस पेड़ के सम्बंध में बताया था। कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के
अनुसार लगभग 1200-1300 वर्ष पूर्व इसे पारसी लोगों ने लगाया था। ईरान से निकलकर आए
पारसी इसी गाँव में पहुँचे थे। अपने आने की निशानी के रूप में उन्होंने इसे यहाँ
लगाया था।
वर्ष 1916 के आसपास पारसी संस्कृति पर रुस्तम
बरजोरजी पेमास्टर द्वारा लिखित पुस्तक में बताया गया है कि यह पेड़ उस समय 35 फीट
ऊँचा था एवं दस शाखाएँ चारों ओर फैली थी। वर्तमान में यह किसान अहमद भाई के खेत
में 25 फीट के दायरे में फैला है। इसके चलने या फैलने की क्रिया वटवृक्ष से भिन्न
है। पहले यह पेड़ चारों ओर काफी फैल जाता है एवं शाखाएँ झुककर धनुषाकार हो जाती
है। एक या दो शाखाएं ज़मीन को स्पर्श कर लेती हैं। स्पर्श के स्थान पर जड़ें बनने
लगती है एवं जमीन में प्रवेश कर जाती हैं। इस प्रकार यह शाखा एक तने का रूप लेकर
नया पेड़ खड़ा कर देती है। नया पेड़ बनते ही इसको बनाने वाली शाखा धीरे-धीरे सूखकर
समाप्त हो जाती है।
पेड़ की यह हरकत पिछले कई वर्षों से जारी है।
गाँव के कई बुज़ुर्ग लोग पेड़ की इस गति के प्रत्यक्षदर्शी हैं एवं कुछ ने अपने जीवनकाल
में इसे दो बार जगह बदलते देखा है। एक पेड़ से दूसरा नया पेड़ बनने में लगभग 20-25
वर्ष का समय लगता है। यह पेड़ अभी तक करीब 4 किलोमीटर की दूरी तय कर चुका है।
इस पेड़ का वैसे कोई धार्मिक महत्त्व नहीं है परन्तु पारसी लोग इसके फल को काफी पवित्र मानते हैं। फल छोटे आकार के होते हैं एवं पकने पर सिंदूरी लाल हो जाते हैं एवं दो दिन में ही सड़ने लगते हैं। क्रिसमस के दिनों में पारसी लोग इसके पास बैठना पसंद करते हैं। राज्य के वन विभाग ने इस पेड़ की कलम लगाने के कई प्रयास किए परन्तु सफलता नहीं मिल पाई। राज्य के 50 धरोहर वृक्षों में इसे शामिल किया गया है। संभवतः देश में अपने आकार का यह एक मात्र चलता पेड़ है जिसे लोग जादुई-पेड़ भी कहते हैं। (स्रोत फीचर्स)
1 comment:
रोचक जानकारी। सुदर्शन रत्नाकर
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