अपने पति की डायरी
खोलकर वो अतीत के पन्नों में बेटी के लिए भविष्य की उम्मीद की किरण तलाशने लगी।
सहसा एक पन्ने पर उसकी दृष्टि ठहरी और
खुशी से चमक उठी। उसके सपने को बल मिला ।
सुनंदा के पति पिछले कई दशक से पाँच गाँवों के मध्य में स्थापित भव्य पौराणिक
सनातन धर्म मंदिर के राजपुरोहित थे। इसलिए सुनंदा अपने पति के स्वर्गवास के पश्चात
अपनी बेटी को बतौर उत्तराधिकारी के रूप में देखना चाहती थी।
सुनंदा अपनी बेटी का हाथ पकड़कर पंडितों की सभा में पहुँच गई। और मंदिर के राजपुरोहित
के लिए बेटी का नाम नामांकित किया। सुनते ही पूरी सभा अवाक रह गई और एक दूसरे का
मुँह निहारने लगी।
एक पंडित ने आवाज उठाई,
"ये नियमों के विरुद्ध हैं। लड़कियाँ भला कब राजपुरोहित बनी है! क्या हमारे समाज?"
"इसका चुनाव विद्वता के आधार पर होना चाहिए ना कि लिंग के आधार पर।" सुनंदा ने अपने मुख से हल्का घूंघट सरकाते हुए
पुरी बुलंदी से कहा । "आज लड़कियाँ
हमारे देश के हर कार्य क्षेत्र में ज़मीन से आसमां तक छायी हुई है। तो फिर मेरी
बेटी राजपुरोहित क्यों नहीं बन सकती? और यह मेरे
स्वर्गवासी पति की आख़िरी इच्छा भी थी। मेरी बेटी ने अपनी शैक्षणिक योग्यता देश के सर्वश्रेष्ठ
विश्वविद्यालय से प्राप्त की है। यहाँ जितने भी पंडित, राजपुरोहित
पद के लिये मनोनीत है , मेरी बेटी उनके साथ शास्त्रार्थ के
लिए भी तैयार है। अगर इसमें कहीं कोई खामी
नजर आईं तो हम स्वयं पीछे हट
जाएँगे।"
सभा में काना - फुसी
शुरू हो गई। उनके मुख पर उभरते भाव नकारात्मक दृष्टिकोण का परिचय दे रहे थे।
कुछ पल की खामोशी के पश्चात एक बुजुर्ग ने
उठकर शास्त्रार्थ के लिए हामी भरी। अतंत: चुनौतीपूर्ण शास्त्रार्थ के पश्चात उसकी बेटी
विजेता घोषित की गई।
बरसों पहले उसके पति
द्वारा देखा गया सपना आज वो अपने आँखों के
सामने पूरा होते हुए देख रही थी और गौरवान्वित भी महसूस कर रही थी। इतिहास के पन्नों में आज उसकी बेटी ने नया कीर्तिमान स्थापित किया था।
-दिल्ली, 9810842108
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