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Jun 1, 2022

आलेखः कब बदलेगा अपमान का यह तरीका?

- डॉ. सुरंगमा यादव

हमारे समाज में महिलाओं के लिए पुरुषों के मुकाबले ज्यादा असुविधाएँ एवं असहज स्थितियाँ हैं। अधिकतर संस्थाओं में पुरुष व महिलाएँ साथ काम करते हैं। पुरुष अपनी बातचीत में अकसर अमर्यादित शब्दों का प्रयोग करते हैं। वे ये भूल जाते हैं या ये ध्यान रखने की आवश्यकता नहीं समझते कि वहाँ कोई महिला भी उपस्थित है। वैसे भी पुरुषों द्वारा महिलाओं को अपमानित करने के कई तरीके हमारे समाज में प्रचलित हैं, जिनमें कुछ प्रत्यक्ष हैं कुछ अप्रत्यक्ष। दो पुरुष जब आपस में झगड़ा करते हैं तो एक दूसरे का अपमान करने के लिए माँ-बहन आदि का प्रयोग करते हुए गाली- गलौच करते हैं। महिलाओं का अपमान करने के लिए भी पुरुषों द्वारा इसी तरह के अश्लील शब्दों का प्रयोग किया जाता है। बहुत ही शर्मनाक स्थिति तब पैदा हो जाती है, जब पिता अपने युवा पुत्र को डाँटने के लिए ऐसी ही भाषा का प्रयोग करता है और तर्क देता है कि ऐसा करके वो लड़के के मन में लज्जा पैदा करना चाहता है। वह स्त्री जो उन दोनों पुरुष में से एक की माँ और एक की पत्नी है, कितना असहज और अपमानित महसूस करती है इसका अंदाजा स्त्री को नगण्य समझने वाला पुरुष समाज कदापि नहीं कर सकता।

प्राचीन काल से लेकर अब तक हमारे समाज में बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं। महिलाओं से सम्बन्धित अनेक कुप्रथाओं तथा परम्पराओं पर रोक लग चुकी है। परन्तु महिलाओं पर केन्द्रित गालियाँ देने की परम्परा यथावत् जारी है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। आश्चर्य तो तब और ज्यादा होता है, जब उच्च शिक्षित और अपने को सभ्य समझने का दम्भ भरने वाले पुरुषों के मुख से भी ऐसी ही अभद्र भाषा सुनाई देती है। तब उनमें और अनपढ़ व्यक्ति में क्या फर्क़ रह जाता है। आखिर महिलाओं को अपमानित करने का यह तरीका कब बदलेगा। जिस प्रकार विशेष जातिसूचक शब्दों द्वारा सम्बोधन प्रतिबंधित है, वैसे ही इस पर भी रोक लगनी चाहिए; क्योंकि यह सम्पूर्ण महिला जाति का अपमान है। महिलाओं को कमतर, दुर्बल और अबला साबित करने के लिए पुरुष एक और वाक्य का अकसर प्रयोग करते हैं, “ हमने चूड़ियाँ नहीं पहन रखी हैं। या क्या चूड़ियाँ पहन रखी हैं? ऐसा कहने वाले पुरुष ये भूल जाते हैं कि चूड़ियाँ कभी महिलाओं की कमजोरी नहीं रहीं। इतिहास इस बात का गवाह है कि चूड़ियाँ पहनने वाले हाथों ने किस तरह कुश्ती, मलखंभ, घुड़सवारी, तीरंदाजी, तैराकी जैसे पुरुषोचित माने जाने वाले कार्यों में निपुणता प्राप्त की और अपने राज्य की महिलाओं को भी इन कार्यों में दक्ष बनाया। वो कोई और नहीं आज भी वीरता का प्रतीक मानी जाने वाली रानी लक्ष्मीबाई थीं, जिन्होंने युद्धभूमि में देशप्रेम और वात्सल्य का एक साथ कुशलता पूर्वक निर्वाह किया। उनके शौर्य और पराक्रम को देखकर अंग्रेज भी चकित रह गए। क्या किसी पुरुष का ऐसा उदाहरण मिल सकता है? महिलाओं की वीरता और विद्वत्ता के उदाहरणों की इतिहास में कमी नहीं है। आधुनिक महिलाएँ उन क्षेत्रों में भी अपना खास स्थान बना रही हैं जिन पर अब तक केवल पुरुषों का ही आधिपत्य था। फिर आखिर क्या कारण है कि पुरुष हमेशा महिलाओं को कमजोर सिद्ध करके अपने पुरुषत्व का प्रमाण देने में लगे रहते हैं। इसका उत्तर जयशंकर प्रसाद के शब्दों में दिया जा सकता है, “तुम भूल गए पुरुषत्व मोह में कुछ सत्ता है नारी की”। पुरुषों को अपनी अहंवादी संकीर्ण मानसिकता से मुक्त होने की महती आवश्यकता है।

 आज समाज की जो कुत्सित मानसिकता विकसित हो रही है, वह केवल महिलाओं के लिए ही नहीं; बल्कि पुरूषों के लिए भी चुनौतीपूर्ण है। अभी कुछ समय पूर्व तक यदि कोई महिला परिवार के किसी पुरुष सदस्य के साथ कहीं जाती थी, तो वह अपने आप को पूर्णतया सुरक्षित समझती थी; परन्तु अब स्थिति बदल गई है। एक क्या एक से अधिक पुरूष सदस्य भी साथ हों, तो भी सुरक्षा की गारंटी नहीं है। आज पुरुष के रक्षक रूप पर ही प्रश्न चिह्न लग गया है।     

7 comments:

Sonneteer Anima Das said...

सटीक आकलन... बदलेगा समाज... बदलेगी सोच....यह केवल सपना है 🌹🙏

Anonymous said...

कड़वी लेकिन सच्ची बात। अपमानजनक भाषा का प्रयोग कर पुरुष अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहता है। समय बदल रहा है। महिलाएँ पुरुषों से कभी भी कमतर नहीं रहीं।असंवैधानिक भाषा का प्रयोग कर अपमानित करने का हक़ क्यों दिया जाए। विरोध आवश्यक है। एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाता सुंदर आलेख। सुदर्शन रत्नाकर

Anonymous said...

सदियों से यही चल रहा है, चूंकि हम पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं इसलिए कोई भी काल हो पुरुषों के आचरण में परिवर्तन नहीं आना है. आपके आलेख में नवीनता नहीं है.

सहज साहित्य said...

पुरुष समाज को रुग्ण मानसिकता से बाहर निकलना होगा। नारी को देवी मानने वाले भी इस बीमारी से मुक्त नहीं।

प्रगति गुप्ता said...

सचेत करने वाला लेख

भीकम सिंह said...

जब नारी आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्रत हो जायेगी, तब बदलेगा ।बेहतरीन लेख के लिए डॉ सुरंगमा यादव जी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।

Bharati Babbar said...

सब संस्कार पर निर्भर करता है। विचारणीय लेख।