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Jun 1, 2022

प्रेरकः सुविधाओं की असली कीमत

 - निशांत

पिछले सौ सालों में मानव और समाज की गति की दिशा के बारे में विचार करता हूँ तो पाता हूँ कि यह केवल सुविधा की ओर दौड़ा जा रहा है। पिछले सौ सालों में हुई खोजों और अविष्कारों पर नज़र डालें तो पाएँगे कि वाशिंग मशीन और ड्रायर, डिशवाशर, मोटरगाड़ियाँ, हवाई जहाज, टीवी, माइक्रोवेव, कम्प्युटर, ई-मेल, इन्टरनेट, फास्ट फ़ूड, लंच पैक्स और ऐसी हजारों चीज़ों ने हमें आधुनिक तो बनाया पर बेहद सुविधाभोगी भी बना दिया।

किसी और बात से भी अधिक हमारा समाज सुविधा पर आश्रित है और उसी पर जीता है। इस सुविधा की क्या कीमत चुकाते हैं हम?

ग्लोबल वार्मिंग। कहते हैं कि हमारे सुविधाभोगी व्यवहार ने ही ग्लोबल वार्मिंग रुपी दैत्य को जन्म दिया है जो देर-सबेर पृथ्वी को निगल ही जाएगा। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए जो उपाय बताये जा रहे हैं वे सुविधा को और भी सुप्राप्य और सस्ती बना देंगे जैसे विद्युत् चालित मोटर वाहन, स्वच्छ ऊर्जा, स्मार्ट फोन, ऑर्गेनिक फ़ूड… ऐसे में मुझे लग रहा है कि हमें अपने सुविधा के प्रति अपने प्रेम पर पुनः विचार करना चाहिए।

मोटापे की महामारी का जन्म भी सुविधाभोगी बनने का ही नतीजा है। फास्ट फ़ूड, माइक्रोवेव फ़ूड, रेडी-टु-ईट पैक्ड फ़ूड के साथ ही ऐसे भोज्य पदार्थ जिनमें कृत्रिम फ्लेवर और प्रोसेसिंग एजेंट मिलाये जाते हैं वे खाने में इतने एंगेजिंग और हलके होते हैं कि उनकी आवश्यक से अधिक मात्रा पेट में पहुँच जाती है। बहुत बड़ा तबका इन भोज्य पदार्थों को अपने दैनिक भोजन का अंग बना चुका है। लोगों के पास समय कम है और अपना खाना खुद बनाना उनके लिए सुविधाजनक नहीं है। मुझे दिल्ली में रेड लाईट पर रुकी गाड़ियों में जल्दी-जल्दी अपना नाश्ता ठूंसते कामकाजी लोग दिखते हैं। चलती गाड़ी में सुरुचिपूर्ण तरीके से थाली में परोसा गया खाना खाना संभव नहीं है और ऐसे में सैंडविच या पराठे जैसी रोल की हुई चीज़ ही खाई जा सकती है। कभी-कभी तो चलती गाड़ी में बैठी महिला अपने पति को खाना खिलाते हुए दिख जाती है। यह सब बहुत मजाकिया लगता है पर आधुनिक जीवन की विवशतापूर्ण त्रासदी की ओर इंगित करता है। आराम से खाने का वक्त भी नहीं है!

सभी लोग पोषक भोजन करना चाहते हैं पर ऐसा जो झटपट बन जाये या बना-बनाया मिल जाये। पहले फुरसत होती थी और घर-परिवार के लोग बैठे-बैठे बातें करते हुए साग-भाजी काट लेते थे। आजकल सब्जीवाले से ही भाजी खरीदकर उसी से फटाफट कटवाने का चलन है। भाजी के साथ इल्ली और कीड़े-मकोड़े कटते हों तो कटने दो। खैर, जब टीवी पर सीरियल न्यूज़ देखते समय खाने से पेट का आकार बढ़ता है तो ज्यादा कुशल मशीनें बनाई जाती हैं जो कसरत को बेहद आसान बना दें सबसे कम समय में। यदि आप घर से बाहर दौड़ नहीं सकते तो घर के भीतर ट्रेडमिल पर दौड़िए। ट्रेडमिल पर दौड़ना नहीं चाहते तो मोर्निंग वाकर भी उपलब्ध है। यह भी नहीं तो स्लिमिंग पिल्स, यहाँ तक कि स्लिमिंग चाय भी मिल जाएगी। सबसे जल्दी दुबला होना चाहते हों तो अपने पेट में मोटी नालियाँ घुसवाकर सारी चर्बी मिनटों में निकलवा लीजिए। घबराइए नहीं, इसमें बिलकुल दर्द नहीं होता और आप उसी दिन उठकर काम पर भी जा सकते हैं!

मैं खुद तो कसरत नहीं करता इसलिए मुझे किसी को पसीना बहानेवाली कसरत करने का लेक्चर नहीं देना चाहिए। लेकिन मैं लगभग रोज़ ही सामान लाने के बहाने लंबा चलता हूँ, लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करता हूँ, अपने कपडे खुद ही धोता हूँ… इसमें बहुत कसरत हो जाती है। असली कसरत तो वही है जिसमें कमरतोड़ मेहनत की जाय और जिसे करने में मज़ा भी आये। ये दोनों ही होना चाहिए। और ऐसी कठोर चर्या के बाद खुद ही अपना खाना बनाकर खाने में जो मजा है वह पिज्जा हट या डोमिनोज को फोन खड़खड़ाने में नहीं है। एक बात और, सादा और संतुलित भोजन बनाने में अधिक समय नहीं लगता है और उसे चैन से बैठकर खाने का आनंद ही क्या!

मोटर कार भी आवागमन का बहुत सुविधाजनक साधन है हाँलाकि किश्तें भरने, सर्विस करवाने, साफ़ करने, पेट्रोल भरवाने, धक्का लगाने, ट्रेफिक में दूसरों से भिड़ने, और पार्किंग की जगह ढूँढने में कभी-कभी घोर असुविधा होती है। इस सुविधा का मोल आप अपनी और पर्यावरण की सेहत से चुका सकते हैं जो शायद सभी के लिए बहुत मामूली है।

यदि आप बारीकी से देखें तो पायेंगे कि सुविधाएँ हमेशा हिडन कॉस्ट या ‘कंडीशंस अप्लाई’ के साथ आती हैं। कभी-कभी ये हिडन कॉस्ट तीसरी दुनिया के देश भुगतते हैं या पर्यावरण को उनका हर्जाना भरना पड़ता है। उनका सबसे तगड़ा झटका तो भविष्य की पीढ़ियों को सहना पड़ता है लेकिन इसके बारे में भला क्यों सोचें? ये सब तो दूसरों की समस्याएं हैं!

मैंने कभी यह कहा था की हम सबको अस्वचालित हो जाना चाहिए। इसपर विचार करने की ज़रुरत है। चिलचिलाती धुप में बाल्टीभर कपड़े उठाकर उन्हें छत में तार पर टांगकर सुखाने का आइडिया बहुतों को झंझट भरा लग सकता है पर इसमें रोमानियत और वहनीयता है। घर के किचन गार्डन में ज़रुरत भर का धनिया या टमाटर उगा लेना किसी को टुच्चापन लग सकता है पर मैं इसे बाज़ार में मिलनेवाले सूखे पत्तों और टोमैटो प्यूरी पर तरजीह दूँगा। पैदल चलना, सायकिल चलाना, और मैट्रो में जाना आरामदायक भले न हो पर मोटर गाड़ी में अकड़े बैठे रहने की तुलना में ज्यादा रोमांचक और चिरस्थाई है।

और हमारे दैनिक जीवन की ऐसी कौन सी असुविधाएँ है जो वास्तव में हमारे लिए वरदान के समान हैं? मेरे पास केवल प्रश्न हैं, उत्तर नहीं ( हिन्दी जे़न से)

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