- निधि भार्गव मानवी
( गीता कालोनी, ईस्ट दिल्ली )
फागुनी ऋतु आ गई हिय जागता अनुराग है ।
तन बदन में घोलता रस रंग- बिरंगा फाग है ..
भावनाएँ जोर करतीं हो रहा मदहोश मन ।
पाँव थामे से न थमते, मन की भागम भाग है ..
हैं पिया परदेश जिनके उनके जी की क्या कहूँ ।
बिरहनों के हिय में इक विरह की आग है ।
क्यूँ गगन में चाँद तारे कर रहे अठखेलियाँ ।
दिल जलाती रात काली, हसरतों में दाग है ।
आएगा मेहमान कोई घर हमारे आज फिर ।
भोर से ही नित मुँडेरी बोलता यह काग है ।
1 comment:
बहुत सुन्दर सृजन वाह
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