माँ वो
ख़त तुम्हारा
ही है ना!
-मीनू खरे
(1) कल रात इक ख़त को खोलते
ही बत्ती चली गई माँ वो ख़त
तुम्हारा ही है ना! अँधेरे में मैंने अक्षरों को सहला
कर देखा था बड़े मुलायम थे
हर्फ़! (2) अकेलापन है खाद जो करे भरे घाव हरे. (3) कल तक नम थीं सिर्फ़ आँखें आज दिल भी नम है कोई मॉनसून आ पहुँचा है मुझ
तक शायद तुमसे टकराने के बाद! (4) कैसे आऊँ मैं भला बादल तेरे गाँव बड़ी ऊँची सी तेरी चौखटो फिसले मेरा पाँव! |
1 comment:
धन्यवाद रत्ना जी!
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