हाँ मैं नारी हूँ!
सजाऊँगी सँवारूँगी
तेरा घर
बंदिनी होकर
नहीं पर
संगिनी बन
चाहती हूँ प्यार की छत
पर सदियों से
जिस आसमां पर
तू काबिज है
उस पर भी हिस्सेदारी
चाहती हूँ।
बरसों से तुझे मैं
सुनती आई हूँ
अब मगर
कुछ मैं भी कहना चाहती हूँ
तेरी तरक्की पर
मन प्राण वारूँगी!
हाँ मगर कुछ मैं भी
करना चाहती हूँ
इससे पहले
हसरतें उन्माद बन जायें
खुद को मौका देना चाहती हूँ।
सम्पर्कः 1-surangmayadav (dr)
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