-सुदर्शन सोलंकी
दिवाली आई और निकल
गई। कुछ राज्यों में पटाखों पर प्रतिबंध लगाए गए थे; लेकिन कुछ राज्यों में समय-सीमा के अलावा और कोई रोक नहीं थी।
वैसे तो इस बार दिवाली पर पटाखों का शोर पिछले सालों की अपेक्षा कम था और कुछ लोग
शायद खुद को शाबाशी दे रहे होंगे कि उन्होंने हरित पटाखे जलाकर अपना पर्यावरणीय
कर्तव्य पूरा किया। यह आलेख हरित पटाखों समेत पूरे मामले की पड़ताल करता है।
हरित पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान
संस्थान (नीरी) की खोज हैं, जो
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंघान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्गत आता है। हरित पटाखे
दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं
पर इनके जलने से प्रदूषण कम होता है। इनमें विभिन्न रासायनिक तत्वों की मौजूदगी और
हानिकारक गैसों वाले धुएँ का कम उत्सर्जन करने वाले तत्वों का इस्तेमाल किया गया
है। इनको जलाने से हवा दूषित करने वाले महीन कणों (पीएम) की मात्रा में 25 से 30
प्रतिशत और पोटेशियम तत्वों के उत्सर्जन में 50 प्रतिशत तक की कमी का अनुमान है।
परंतु
पर्यावरणविदों ने इन पटाखों के अधिक उपयोग को भी खतरनाक माना है। लोगों में हरित
पटाखों को लेकर कई भ्रम हैं। लोग समझते हैं कि ये पूरी तरह प्रदूषण मुक्त हैं।
इसलिए लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है; क्योंकि अगर लोग इन्हें हरित समझकर अधिक जलाते हैं ,तो निश्चित ही त्यौहारों के बाद में प्रदूषण का स्तर बढ़ेगा।
सेंटर फॉर साइंस
एंड एनवायरमेंट के अनुसार सरकार को सभी परिवारों के पटाखे खरीदने की एक सीमा
निर्धारित करनी चाहिए, जिससे
लोग एक तय सीमा से अधिक इन पटाखों का इस्तेमाल ना कर सकें। लोग समूहों में पटाखे
जलाएं जिससे कम से कम पटाखों में सबका जश्न हो सके। अधिकतर त्यौहारों में पटाखे जलाकर जश्न मनाया जाता है
किंतु बढ़ते प्रदूषण स्तर के चलते इनके उपयोग को सीमित रखना बेहद आवश्यक है।
बड़े त्योहारों पर व्यापक आतिशबाज़ी से बड़ी मात्रा
में हानिकारक गैसें और विषाक्त पदार्थ वायुमंडल में पहुंचते हैं। परिणामस्वरूप,
वायु प्रदूषित हो जाती है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेरदायक है। हाल ही के अध्ययन में दिल्ली और गुवाहाटी के भारतीय प्रौद्योगिकी
संस्थानों के शोधकर्ताओं ने दीपावली के दौरान पटाखों से होने वाले अत्यधिक वायु और
ध्वनि प्रदूषण और स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव का अध्ययन जर्नल ऑफ हेल्थ एंड
पॉल्युशन में प्रकाशित किया है।
स्वास्थ्य पर इनके
प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए, शोधकर्ताओं ने उस अवधि के दौरान संस्थान के अस्पताल में जाने वाले रोगियों
के स्वास्थ्य का सर्वेक्षण भी किया। इस अध्ययन में प्रदूषकों के स्तर में वृद्धि
देखी गई। शोधकर्ताओं के अनुसार दीपावली के दौरान पीएम-10 की सांद्रता अन्य समय की
तुलना में 81 प्रतिशत अधिक थी, और धातुओं एवं आयनों की
सांद्रता में भी 65 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई। शोर का स्तर भी अधिक था। हालाँकि शोधकर्ताओं ने पाया कि अन्य दिनों की तुलना में दीपावली के दौरान
पीएम-10 में बैक्टीरिया की सांद्रता 39 प्रतिशत कम थी। सीसा, लोहा, जस्ता जैसी भारी धातुओं की उपस्थिति इसका कारण
हो सकती है।
डब्लूएचओ ने
सिफारिश की है कि पीएम-2.5 का वार्षिक औसत घनत्व 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से
कम होना चाहिए, लेकिन भारत और
चीन के शहरी क्षेत्रों में इसका स्तर छह गुना ज़्यादा (क्रमश: 66 और 59
माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट से पता चला है
कि वायु की गुणवत्ता के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में भारत और
चीन हैं। पीएम-2.5 घनत्व में बीजिंग और नई दिल्ली दोनों ही शहर शामिल है। किंतु
बीजिंग ने इसमें सुधार किया है।
वायु में अन्य
गैसें और बगैर जले कार्बन कण मिश्रित होकर स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक बन जाते
हैं। सूक्ष्म कण (पीएम-2.5) मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक माने जाते हैं
क्योंकि ये फेफड़ों में काफी अंदर तक चले जाते हैं, और इनसे फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है। वर्ष 2015 में
पीएम-2.5 के कारण विश्व भर में 42 लाख से भी अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। इनमें
से 58 प्रतिशत मौतें भारत और चीन में हुर्इं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज़ेस नामक
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 से लेकर अब तक चीन में
पीएम-2.5 के कारण असमय मौतों में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत में यह आँकड़ा
तीन गुना अधिक है। पटाखों के अत्यधिक उपयोग से छोटी-सी अवधि में ही हवा की
गुणवत्ता खराब हो जाती है। (स्रोत फीचर्स)
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