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Dec 6, 2020

ग़ज़ल- अधूरा रह गया

- रमेशराज

 

पत्थरों ने मोम खुद को औकहा पत्थर हमें 

प्रेम में जज़्बात के कैसे मिले उत्तर हमें।

 

आप कहते और क्या जब आपने डस ही लिया

अन्ततः कह ही दिया अब आपने विषधर हमें।

 

इस धुँए का, इस घुटन का कम सताता डर हमें 

तू पलक थी और रखती आँख में ढककर हमें।

 

साँस के एहसास से छूते कभी तुम गन्ध को 

आपने खारिज किया है आँख से प्रियवर हमें।

 

आब का हर ख्वाब जीवन में अधूरा रह गया

देखने अब भी घने नित प्यास के मंजर हमें।


 सम्पर्कः ईशानगर , अलीगढ़, 

 E-mail : rameshraj5452@gmail.com

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