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Dec 5, 2020

कविता- आखिरी पन्ना


- रमेश कुमार सोनी 


मैं पहाड़ों की शृंखलाओं में

कुछ किताबें पढ़ने गया था,

कुछ अच्छा सुनने की चाहत

 

मुझे खींचकर ले ग थी

एक वृद्धाश्रम में

हाँ,वहीं जहाँ

कोई आनाजाना नहीं चाहता!

 

मुझे मेरी सहनशक्ति पर गर्व था,

सुनने की अपार शक्ति थी मुझमें,

चट्टानी छाती में एक बड़ा कलेजा लिये;

मेरी रेगिस्तान जैसी आँखों ने देखा

 

शवासन में लेटे

ग्लेशियर जैसे ठहरे हुए लोग;

उन्होंने न कुछ देखा,कहा और

ना ही कुछ सुना

सिर्फ देखते रहे मुझे

 

ढूँढते रहे मुझमें

अपना बचपन,अपनी जवानी,

अपनी गलतियाँ और

अपने रिश्तों की दुनिया

मेरी आँखें सागर हुईं,

जिगर चाक हुआ,

 

शब्द गूँगे हो गए

मैं लौट रहा हूँ जिंदगी के

इस आखिरी जिन्दा पड़ाव से

इनकी आँखों में

सिर्फ़ एक ही भाषा जिन्दा है

 

ढाई आखर की

उम्मीदों के इस रेगिस्तान में

चिंता,दुःख,हर्ष.....का प्रवेश मना है

चौकीदार ने पूछा-

किनसे मिलना है साहब?

 

मैंने कहा

मैं अपने स्वयं के

भविष्य से मिलने आया हूँ

मैंने यहाँ देखा-

मौत के इंतज़ार की मरीचिका में 

 

इन खुली किताबों का

आखिरी पन्ना कोरा है

बिलकुल कोरा

कफ़न जैसा शुभ्र,धवल....


सम्पर्कः LIG -24 कबीर नगर ,फेस -, रायपुर , छत्तीसगढ़ पिन -492099 , E-mail: rksoni1111@gmail.com

2 comments:

Sudershan Ratnakar said...

मैं अपने स्वयं के
भविष्य से मिलने आया हूँ। मर्मस्पर्शी ,भावपूर्ण कविता।

ARUN SHEKHAR said...

बहुत मार्मिक