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Nov 3, 2020

दो कविताएँ

-डॉ. कविता भट्ट

 

 1. प्रथम अनिवार्य प्रश्न-सा

 

पहाड़ियों से बहती बयार;

मेरे तन-मन को छूकर

संगीत के साथ बहती है;

चढ़ाई-उतराई की पीड़ा को

कर्णप्रिय स्वरलहरी में बदलने हेतु

सक्षम हैअतः मेरे लिए विशेष है।

 

मेरे तथाकथित घर की

खिड़की से दिखती है

एक नदीजिसकी मृदु-तरंगित लहरें

कठोर सीने वाले पत्थरों पर

संघर्ष से सफलता लिखने हेतु

सक्षम हैंअतः मेरे लिए विशेष है।

 

और हाँ दिखता है एक पीपल भी

दूर पर्वत की चोटी पर खड़ा

कर्मयोगी-सा तपस्यारत

सबके बीच रहकर भी है विरक्त

बिना प्रतिदान चाहेप्राणवायु बाँटने हेतु

सक्षम हैअतः मेरे लिए विशेष है।

 

बहती बयारनदी की लहरों

और कभी-कभी पीपल बन

परीक्षापत्र के प्रथम अनिवार्य प्रश्न-सा

एक प्रश्नजो उठता ही रहता है

प्रायः मेरे व्याकुल मन में;

'हमविशेष क्यों नहीं हो सके?


2. झरोखे से

 

मद्धिम दीपशिखा की रोशनी में

देखो दूर पहाड़ी पर बैठे चाँद को;

स्नान कर आया है जो-

चाँदनी के चुम्बनों से

वृक्षों की झुरमुट में छुपकर।

अहा! चाँद

अच्छा है कि तुम और तुम्हारी चाँदनी

दुनियादार नहीं हो;

अन्यथा इतने निर्भीक होकर

तुम पहाड़ी पर न बैठ पाते।

4 comments:

Sudershan Ratnakar said...

प्राकृतिक छटा का सुंदर चित्रण।

Dr.Mahima Shrivastava said...

Bahut sunder

शिवम कुमार पाण्डेय said...

बहुत सुंदर सृजन

Anita Manda said...

बहुत सुंदर!