1 दीमक
मकान तो था शानदार और विशाल, लेकिन पुराना था। वह उसी मकान का नया मालिक था।
मकान में सपरिवार दाख़िल होते ही उसने सबसे पहले उसकी बाहरी सुरक्षा पर ज़्यादा
ध्यान दिया। मकान के चारों ओर के अहाते को
ऊँचा किया। कँटीले तार के बाड़ों से अहाते को घेरा। रौशनी का पुख्ता इंतजाम किया। लकड़ी
के कुछ दरवाजों को हटाकर लोहे के मज़बूत दरवाजे लगवाए। दरवाज़ों के आगे आयरन ग्रिल फिट करवाया।
सभी दरवाजों को आधुनिक ढंग की ‘लॉकएंड की’ सिस्टम से लैस किया। सुरक्षा के
चाक-चौबंद इंतज़ामात के बाद वह निडर और बेफ़िक्र
होकर उस मकान में रहने लगा।
एक दिन अचानक कमरों की दीवारों पर मिटटी की मोटी-मोटी रेखाएँ देखकर वह बुरी
तरह चौंक गया। हैरानगी की अवस्था में उसने मिट्टी
खुरचकर देखी, तो उसकी कँपकँपी छूट गई। घर के
भीतर इस हमलावर दुश्मन की मौजूदगी से दहशतज़दा हो गया।
अब वह दिन-रात घर के भीतर हमला करने वाली दीमकों का सफाया करने में लगा रहता
है।
2-प्रतिशोध
वे तीनों इज्ज़तदार और रसूखदार परिवारों के बिगडैल युवा थे।
वे अपनी घिनौनी हरकतों में फिर एक बार इज़ाफा करते हुए आज भी एक लड़की को
अगवाकर एक सुनसान इलाके में ले गए। लड़की तड़पती रही, छटपटाती रही, रो-रोकर रहम करने
की मिन्नतें करती रही; लेकिन उन वहशियों पर इसका कोई असर
नहीं पड़ा। वे अमानुषिक ढंग से बारी बारी उसकी अस्मत से खिलवाड़ करते रहे।
इस कुकृत्य को अंजाम देकर वे तीनों अपनी लग्ज़री कार में सवार होकर जैसे ही
भागने को उद्यत हुए, रोती हुई , निढाल
लड़की झटके से उठ बैठी। पुलिस, थाना, कोर्ट-कचहरी कानून से परे अचानक उसके दिमाग
में इन वहशियों के लिए एक ऐसी सज़ा बिजली की मानिंद कौंधी और वह ठठाकर हँस पड़ी।
उनकी बर्बरता को झेलने के बाद भी उस लड़की को इस तरह हँसते देख उन पर हैरानगी और घबराहट का भयमिश्रित भाव तत्काल
तारी हो गया। उनमें से एक ने बेहुदगी से पूछा, ‘पगला गई है का रे ?...काहे हँस रही
है ?’
लड़की की हँसी पूर्व की अपेक्षा तेज़ हो गई , ‘तुम सब जीते जी मारे जाओगे
.....धीरे-धीरे!’
‘क्या
बकती है बे ?’
‘बक
नहीं रही हूँ ....सच कह रही हूँ ।’
‘तो ,
बोल न!... कैसे ?’
‘मुझे
एड्स है!’
तीनो के दिमाग में एक भयंकर विस्फोट हुआ और तत्काल उन्हें अपने-अपने भविष्य के
चिथड़े उड़ते नज़र आने लगे।
3-उसके हिस्से की रोटी
‘ऐजी!.........सुनते
हो!’
‘क्या
है ?’ अखबार पढने में मसरूफ़ पति ने सर उठाया।
‘आज
रोटियाँ नहीं बनाती हूँ ।’
‘क्यों
, आटा ख़त्म हो गया क्या ?’
‘नहीं ,
ऐसी बात नहीं!......असल में रात की रोटियाँ बची हुई हैं।’
‘मैं
नहीं खाऊँगा बासी रोटी। ताज़ा बनाओ।’
‘फिर
क्या करें उन रोटियों का ?’
‘क्या
करें मतलब ?....तुम खाओगी!...और क्या! ’
4-सो तो था
‘प्रोणाम जानाई काकी माँ!’
दुर्गा काकी घर के द्वार पर ही मिल गई थी।
‘अरे ,
बापी!....कोखोनएले ?....ऐसो भीतोरे बोसो!’ ( कब
आया ? आओ अन्दर बैठो )
‘कल ही
आया काकी माँ! ...आप लोग कैसी हैं ?...सुना है रत्नादी की शादी हो गई। कैसी है वो?’
‘खूब
भालो... एकदम बढ़िया! ...भोगवान ने बहुत
बड़ा बोझ उतार दिया हमारा सिर से।’
‘अरे
ऐसा नहीं कहते काकी माँ बेटियों के बारे में।’
दुर्गा काकी खामोश रही।
‘खैर
,छोडिए! बताइए......घर सूना सूना लगता
होगा आप लोगों को, है न काकी माँ?’
‘ता तो
आछे!’ ( सो
तो है )
‘दिन भर
गुनगुनाती रहती थी रत्ना दी। बड़ा सुरीला कंठ पाया है उसने।’
‘ता तो
छिलो।’ (सो तो
था )
‘अच्छा
लिखती भी थी कविताएँ ,कहानियाँ वैगरह।’
‘ता तो
छिलो।’
‘अरे
हाँ , उसकी बनाई पेंटिंग अभी भी मेरे पास है।... रेखाओं और रंगों की कितनी अच्छी
समझ थी ....’
‘ता तो
छिलो।’
‘अरे
हाँ हाँ ....सोब जानि आमि।’ (हाँ, हाँ , सब जानती हूँ )
काकी माँ के स्वर में झुंझलाहट थी।
‘स्पोर्स्ट्स
में भी सबसे आगे रहती थी।’
काकी माँ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई।
‘तुमि बोसो
बापी। तोमार जन्ये चा करे आनछि।’ चाखाबे तो ?( तुम बैठो। तुम्हारे लिए चाय बनाकर लाती हूँ।
चाय पिओगे तो?)
दरअसल वह इन सब बातों पर विराम देना चाहती थी।
चाय की चुस्कियाँ लेते हुए बापी ने यों ही पूछ लिया , ‘शादी के बाद भी क्या वो सब जारी है
काकी माँ?’
‘अरे,
काहे को जारी रखेगा ?’ काकी
माँ के स्वर में शुष्कता आ गई , ‘सुन्दोर वर मिला है। ख़ूब बड़ा बाड़ी है। दामी गाड़ी है। पूरा सोना-गोईना पाया है। दुईठो
प्यारा-प्यारा बाच्चा है।... एबार गान-टान, लेखा-लेखी, छवि आँका -टाँका करे आर कि
होबे? (अब गाना –वाना, लिखा –लिखी, चित्रकारी करके और क्या होगा ?’
वह काफी देर तक काकी माँकी आँखों में उस रत्ना दी को ढूँढू रहा था। लेकिन वह
वहाँ नहीं थी।
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