-कुणाल
शर्मा
जनवरी का महीना था।
कड़ाके की सर्दी से खून नसों में जमा जा रहा था। न्यू ऑफिसर कॉलोनी के बड़े से गेट
के पास बनी पोस्ट में ड्यूटी पर तैनात
कांस्टेबल बीच-बीच में उठकर गश्त लगा आता। रात गहरा रही थी और
रजाइयों में दुबके पड़े कॉलोनी वासियों को नींद अपने
आगोश में लिए थी। दूर-पास से आती कुत्तों के भोंकने की आवाज बीच-बीच में सन्नाटे
को तोड़ रही थी। इन सब के बीच कांस्टेबल की नजर पार्क में बनी छतरीनुमा छत के नीचे
बेंच पर लेटे एक व्यक्ति पर पड़ी । झींगुरों की आवाज के बीच ‘टक-टक’
करते उसके कदम उसके पास जाकर ठहर गए। बेंच पर, खुद को फ़टे से कम्बल में लपेटे बड़ी- बड़ी उलझी दाढ़ी, चीकट बाल और मैले-कुचैले कपड़ों वाला एक भिखारीनुमा व्यक्ति अधलेटा सा पड़ा
था। वह बेंच पर डंडा बजाते हुए गरजा :
‘चलो उठो यहाँ
से। इधर सोना मना है।’
वह हड़बड़ा कर उठा।
हाथ में डंडा थामे खाकी वर्दीधारी को देख वह बिना कुछ कहे वहाँ से खिसक गया।
दूसरी रात भी वह व्यक्ति उसी बेंच पर लेटा था। उसके
पास जाकर कांस्टेबल कड़क अंदाज में बोला :
‘चलो उठो यहाँ से।
कल बात समझ नहीं आई थी? कोई पियक्कड़ मालूम पड़ते हो ?’
‘साहब , पियक्कड़ नहीं, बेघर हूँ । ठण्डी ज़्यादा थी तो ….।’
वह इससे ज्यादा
नहीं कह पाया और शरीर को कम्बल से ढाँप पाँव घसीटता हुआ वहाँ से चला गया ।
अगली रात दाँत
किटकिटाने वाली ठण्ड थी। बर्फीली हवा शरीर में सिरहन पैदा कर रही थी। गश्त लगाते कांस्टेबल की नजर
फिर से उस भिखारीनुमा व्यक्ति पर पड़ी जो बेंच पर गठरी बना लेटा था। वह एक क्षण के
लिए उस ओर मुड़ा; पर कुछ सोचकर उसके पाँव वहीं ठिठक
गए। वह उस तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और कुछ देर पहले सड़क किनारे सुलगाये अलाव पर हाथ सेंकने लगा।
2-
सलीब पर पिता

‘बुढ़ापे में
दिमाग सठिया गया है। मैं कितना कहता हूँ कि एक्स्टेंशन किसी को मत दो।’ अन्दर वह अपने बाप पर बरस रहा था, ‘हम व्यापार करने
को बैठे हैं या धर्मादा चलाने को… अभी इसका हिसाब साफ करो और
दफ़ा करो।’
केबिन से
निकलकर ये तीर उनके कलेजे में आ गुभे। उनका मन हुआ कि जिल्लतभरी इस नौकरी को
तुरन्त लात मार दें। रिटायरमेंट के पहले भी वे इस तरह बेइज़्ज़त
होते आए थे, लेकिन अब तो दोनों बेटे अच्छी कंपनी में
सेट हो गए हैं और बढ़िया कमा रहे हैं। अगर उन्हें इस अपमान के बारे में पता चल गया
तो कल से कतई यहाँ नहीं आने देंगे। रिटायरमेंट के बाद वे एक्सटेंसन पर हैं; शायद तभी नजरों में खटकते हैं। उन्होंने मन बना लिया कि आज शाम घर जाकर
सब-कुछ साफ-साफ बयान कर देंगे; और वही उन्होंने किया
भी। सारा दुखड़ा बेटों के आगे रो दिया।
‘पिताजी, प्राइवेट नौकरी में तो यह सब चलता रहता है ।’ बड़े
बेटे ने हँसते-हँसते ज्ञान दिया, ‘अगर मालिक कुछ नहीं कहेगा,
तो उसे मालिक कौन कहेगा..! जैसे अब तक करते आए
थे, वैसे ही- बस, एक कान से सुनते और दूसरे से निकालते रहिए।’
‘वैसे भी, आपको कुछ दे ही रहे हैं न! वरना रिटायरमेंट के बाद कौन किसी को नौकरी पर
रोकता है।’ उसके बाद छोटे बेटे के शब्द उनके माथे से टकराए।
वे उन
दोनों को देखते रह गए- एकदम मूक।
अगली सुबह, भरे मन से फैक्टरी की ओर चल दिए। लेकिन, आज से
उन्हें बेटों के भविष्य के लिए नहीं, खुद अपने लिए
तिरस्कृत होना था।
सम्पर्कः 137 , पटेल नगर (जण्डली ), अम्बाला शहर : 134003- हरियाणा, फोन : 9728077749, Email : kunaladiti0001@gmail.com
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