पिता
ने क्या
किया
- लोकेन्द्र सिंह
क्या किया पिता ने
तुम्हारे लिए?
तुमने साहस कहाँ से
बटोरा
प्रश्न यह पूछने
का।
बचपन की छोड़ो
तब की तुम्हें सुध
न होगी
जवानी तो याद है न
तो फिर याद करो...
पिता दफ्तर जाते थे
साइकिल से
तुम्हें दिलाई थी
नई मोपेड
जाने के लिए कॉलेज।
ऊँची पढ़ाई कराने के लिए तुम्हें
बैंक के काटे चक्कर
तमाम
लाखों का लिया
उधार।
तुम्हारे कँधों पर
होना था
बोझ उस उधार का
लेकिन, कमर झुकी है पिता की।
याद करो,
पिता ने पहनी
तुम्हारी उतरी कमीज
लेकिन, तुम्हें दिलाई ब्रांडेड जींस
पेट काटकर जोड़े
कुछ रुपये
तुम्हारा जन्मदिन
होटल में मनाने।
नहीं आने दी तुम तक
मुसीबत की एक
चिंगारी भी, कभी
खुद के स्वप्न खो
दिए सब
तुम्हारे लिए चाँद-सितारे
लाने में।
पिता ही उस मौके पर
साथ तुम्हारे थे
जब पहली बार हार से
कदम तुम्हारे
लडख़ड़ाए थे।
सोचो पिता ने हटा
लिया होता आसरा
तो क्या खड़े होते
तुम
जिस जगह खड़े हो
आज।
पिता होकर क्या
पाया
तुम्हारा रूखा
व्यवहार, बेअदब सवाल
पिता होकर ही
समझोगे शायद तुम।
फिर साहस न जुटा
पाओगे
प्रश्न यह पूछने का
क्या किया पिता ने
तुम्हारे लिए?
आओ, प्यारे
प्रश्न यह बनाने की
कोशिश करें
हमने क्या किया
पिता के लिए?
क्या करेंगे पिता
के लिए?
क्या उऋण हो सकेंगे
पितृ ऋण से?
संपर्क : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार
विश्वविद्यालय, बी-38,
विकास भवन, प्रेस काम्प्लेक्स, महाराणा प्रताप नगर जोन-1, भोपाल (मध्यप्रदेश) – 462011 दूरभाष : 09893072930 www.apnapanchoo.blogspot.in
2 comments:
बहुत सुंदर और सार्थक कविता, आपको बधाई लोकेंद्र सिंह जी!
सामयिक सुंदर कविता
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