अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का कुत्सित रूप
कोरोना
वायरस
-डॉ. नीलम महेन्द्र
आज जब एशिया के एक देश चीन के एक शहर वुहान से
कोरोना नामक वायरस का संक्रमण देखते ही देखते जापान, जर्मनी, अमेरिका,
फ्रांस, कनाडा, रूस समेत
विश्व के 30 से अधिक देशों में फैल जाता है तो निश्चित ही
वैश्वीकरण के इस दौर में इस प्रकार की घटनाएँ हमें ग्लोबलाइजेशन के
दूसरे डरावने पहलू से रूबरू कराती हैं। क्योंकि आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि
कोरोना वायरस के संक्रमण से विश्व भर में अब तक 2012 मौतें
हो चुकी हैं और लगभग 75303 लोग इसकी चपेट में हैं
जबकि आशंका है कि यथार्थ इससे ज्यादा भयावह हो सकता है। लेकिन यहाँ बात केवल विश्व भर में लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान तक
ही सीमित नहीं है बल्कि पहले से मंदी झेल रहे विश्व में इसका नकारात्मक प्रभाव
चीन समेत उन सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर भी
पड़ना है जो चीन से व्यापार करते हैं जिनमे भारत भी शामिल है। बात यह भी है कि जेनेटिक
इंजीनियरिंग, रोबोटिक्स और आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के इस अति
वैज्ञानिक युग में जब किसी देश में एक नए तरह का संक्रमण फैलता है जो सम्भवतः एक
वैज्ञानिक भूल का अविष्कार होता है, जिसके बारे में मनुष्यों
में पहले कभी सुना नहीं गया हो और उसकी उत्पत्ति को
लेकर बायो टेरेरिज्म जैसे विभिन्न विवादास्पद
सिद्धान्त सामने आने लगते हैं तो यह ना सिर्फ हैरान
बल्कि परेशान करने वाले भी होते हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि विज्ञान के दम पर प्रकृति से खिलवाड़ करने की मानव की क्षमता और उसके आचरण को सम्पूर्ण सृष्टि के हित को ध्यान में रखते हुए गंभीरता के
साथ नए सिरे से परिभाषित किया जाए।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrBYaW6jZgE015kVfyD_uxUVWXbEfAvFObufe3Tt4wEqlhS2D_HS2tCMF74sfqa-xaq4uzI2Ub1I4gpTA0BIaUkHcWmhA3L8GB3Ts_64-UK92de0cFiiZiQeAWHaN9kIZwdwqlcLdYoFIK/s200/corona+virus-7.jpg)
दरअसल चीन के वुहान से शुरू हुए इस कोरोना
संक्रमण को लेकर अलग अलग देश अलग अलग दावे कर रहे हैं। जहाँ एक ओर रूस, अरब, सीरिया, जैसे
देश चीन में फैले कोरोना वायरस के लिए अमेरिका
और इजरायल को दोष दे रहे हैं वही अमेरिका खुद
चीन को ही कोरोना का जनक बता रहा है। मज़े की बात यह
है कि सबूत किसी के पास नही हैं लेकिन अपने अपने तर्क सभी के पास हैं। रूस का कहना है कि कोरोना वायरस अमेरिका द्वारा उत्पन्न एक जैविक हथियार है जिसे उसने चीन की अर्थव्यवस्था चौपट करने के लिए उसके खिलाफ
इस्तेमाल किया है। इससे पहले रूस 1980 के शीत युद्ध के दौर में एच आई वी के संक्रमण के लिए भी अमेरिका को
जिम्मेदार बता चुका है। जबकि अरबी मीडिया का कहना है कि अमेरिका और इजरायल ने चीन के खिलाफ मनोवैज्ञानिक और आर्थिक युद्ध के उद्देश्य से इस जैविक हथियार का प्रयोग किया है। अपने इस कथन के पक्ष में वो विभिन्न तर्क भी प्रस्तुत करत है। सऊदी अरब समाचार पत्र अलवतन लिखता है कि मिस्र की ओर से इस घोषणा के
बाद कि कुछ दिनों बाद वो चिकन उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा और निर्यात करने
में भी सक्षम हो जाएगा इसलिए अब वह अमेरिका और फ्रांस से चिकन आयात नहीं करेगा, अचानक बर्ड फ्लू फैल जाता है
और मिस्र का चिकन उद्योग तबाह हो जाता है। इसी तरह जब चीन
ने 2003 में घोषणा की कि उसके पास दुनिया का सबसे अधिक
विदेशी मुद्रा भंडार है तो उसकी इस घोषणा के बाद चीन में अचानक सार्स फैल जाता है
और चीनी विदेशी मुद्रा भंडार विदेशों से दवाएँ खरीद कर खत्म हो जाता है। इसी
प्रकार सीरिया का
कहना है कि कोरोना वायरस का इस्तेमाल अमेरिका ने चीन के खिलाफ उसकी अर्थव्यवस्था खत्म करने के लिए किया है। सीरिया के अनुसार इससे पहले भी अमेरिका एबोला, जीका, बर्ड फ्लू, स्वाइन
फ्लू, एंथ्रेक्स, मैड
काऊ, जैसे जैविक हथियारों का प्रयोग अन्य
देशों पर दबाव डालने के लिए कर चुका है। जैसे कि पहले भी कहा जा चुका है,जो लोग कोरोना वायरस
को एक जैविक हथियार मानते हैं उनके पास इस बात का भी तर्क है कि आखिर वुहान को ही
क्यों चुना गया। मिस्र की वेबसाइट वेतोगन के अनुसार वुहान चीन का आठवाँ सबसे बड़ा औद्योगिक शहर है। आठवें स्थान पर होने के कारण चीन के अन्य बड़े शहरों
की तरह इस शहर में स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता इसलिए इसे
संक्रमण फैलाने के लिए चुना गया।
जबकि इज़राइल का कहना है कि कोरोना वायरस चीन का ही जैविक हथियार है जिसने खुद चीन को ही जला दिया। अपने इस कथन के समर्थन में
इज़राइल का कहना है कि कोरोना का संक्रमण वुहान से शुरू होना कोई इत्तेफाक नहीं है
जहाँ पर वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलोजी नामक प्रयोगशाला है जो
वहाँ की सेना के साथ मिलकर इस प्रकार के
खतरनाक वायरस पर अनुसंधान करती है। हालांकि चीन का
कहना है कि वुहान के पशु बाजार से इस वायरस का
संक्रमण फैला है। लेकिन विभिन्न जाँचों से अब यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि जिन साँपों और चमगादड़ों से इस वायरस
के फैलने की बात की जा रही थी वो सरासर गलत है क्योंकि साँपों में यह वायरस पाया
ही नहीं जाता और चमगादड़ का जब सूप बनाकर या पकाकर उसका सेवन किया जाता है तो पकाने
के दौरान अधिक तापमान में यह वायरस नष्ट हो जाता है। इस
सिलसिले में अमेरिका के सीनेटर टॉम कॉटन का कहना है कि कोरोना वायरस वुहान के पशु
बाजार से नहीं फैला। हम नहीं जानते कि वो कहाँ से फैला लेकिन हमें यह जानना जरूरी
है कि यह कहाँ से और कैसे फैला क्योंकि वुहान के पशु बाजार के कुछ ही दूरी पर चीन
का वो अनुसंधान केंद्र भी है जहां मानव संक्रमण पर अनुसंधान होते हैं। उन्होंने
अपने इस बयान के समर्थन में कहा कि हालांकि उनके पास इस बात के सबूत नहीं है कि
कोरोना वायरस चीन द्वारा बनाया गया जैविक हथियार है लेकिन चूंकि चीन का शुरू से ही कपट और बेईमानी का आचरण रहा है हमें चीन से साक्ष्य मांगने चाहिए। यहाँ यह
जानना भी रोचक होगा कि जब अमेरिका में चीनी राजदूत से टॉम कॉटन के बयान पर
प्रतिक्रिया मांगी गई तो उनका कहना था कि चीन में लोगों का मानना है कि कोरोना
अमेरिका का जैविक हथियार है। वैसे पूरी दुनिय जानती हैं कि खबरों पर चीन की कितनी
सेंसरशिप और चीन से बाहर पहुँचने वाली सूचनाओं पर उसकी
कितनी पकड़ है। अतः काफी हद तक चीन के इस संदेहास्पद आचरण का इतिहास भी चीन
के
द्वारा ही किए जाने वाले किसी षड्यंत्र का उसी पर उल्टा पड़ जाने की बात को बल देता है। कहा जा रहा है कि चीन में कोरोना संक्रमण फैलने के कुछ सप्ताह के भीतर ही
चीन के इंटरनेट पर इसे अमेरिकी षड्यंत्र बताया जाने लगा था। जानकारों का कहना है
कि चीन द्वारा इस प्रकार का प्रोपोगेंडा जानकर फैलाया गया ताकि जब भविष्य में उस
पर उसकी लैबोरेटरी से ही वायरस के फैलने की बात सामने आए तो यह उसकी काट बन सके।
वैसे कोरोना वायरस खुद चीन की लैबोरेटरी से फैला है
इस बात को बल इसलिए भी मिलता है कि जब चीन के आठ
डॉक्टरों की टीम ने एक नए और खतरनाक वायरस के
फैलने को लेकर सरकार और लोगों को चेताने की कोशिश की थी तो चीनी सरकार द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया गया। कुछ समय बाद इनमें से एक डॉक्टर की इसी संक्रमण की चपेट में आकर मृत्यु हो जाने की खबर भी आई। इतना ही नहीं जब 12 दिसंबर को चीन में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया था तो चीन ने उसे दबाने की कोशिश की। चीन की सरकारी साउथ चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी
के मुताबिक संभव है हुबेई प्रांत में सेंटर फॉर
डिसीज़ कंट्रोलने रोग फैलाने वाली इस बीमारी के वायरस को जन्म दिया हो। स्कॉलर बोताओ शाओ और ली शाओ का दावा है कि इस लैब में ऐसे जानवरों अनुसार इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश कभी भी किसी भी परिस्थिति में किसी भी प्रकार के जैविक हथियार का निर्माण उत्पादन या सरंक्षण नहीं करेंगे। लेकिन यह अभिसमय देशों को यह अधिकार देता है कि वो अपनी रक्षा के लिए अनुसंधान कर सकते हैं दूसरे शब्दों में एक वायरस को मारने के लिए दूसरा वायरस बना सकते हैं। इसी की आड़ में अमेरिका, रूस,चीन जैसे देश जैविक हथियारों पर अनुसंधान करते हैं। लेकिन कोरोना वायरस के इस ताज़ा घटनाक्रम से अब यह जरूरी हो गया है कि वैज्ञानिक विज्ञान के सहारे नए अनुसंधान करते समय मानवता के प्रति अपने कर्तव्य को भी समझें और अपनी प्रतिभा एवं ज्ञान का उपयोग सम्पूर्ण सृष्टि के उत्थान के लिए करें उसके विनाश के लिए नहीं।
drneelammahendra@gmail.com
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