कब तक कोमल कहलाओगी
डॉ. सुरंगमा यादव
नारी तुम कब तक कोमल कहलाओगी
जीवन भर यूँ ही पीयूष स्रोत-सी बहती जाओगी
फिर भी श्रद्धा-सी हर युग में मनु से ठुकराई जाओगी
औरों की करनी का ऐसे ही तुम
दण्ड भोगती जाओगी
प्रणय निवेदन करने पर
शूर्पणखा-सा फल पाओगी
ठुकराने पर एसिड अटैक करवाओगी
कभी शिला बन कभी परित्यक्ता बन
जीवन यूँ ही बिताओगी
कभी दाँव पर लग जाओगी
कभी उपहारों में बाँटी जाओगी
बोलो नारी तुम कब तक कोमल कहलाओगी
रावण-दुर्योधन निंदित हैं
पर जिनके कारण कृत्य हुए यह
वे जन जग में सम्मानित हैं
मर्यादा पुरुषोत्तम होकर
नारी का अपमान किया
जीवन भर जिसका दण्ड भोगती सिया
धर्मराज ने कैसा धर्म निभाया
दाँव पर पत्नी को निःसंकोच लगाया
छल किया इन्द्र ने
शापित हुई अहिल्या
बाहुबली इन्द्र का बाल न बाँका हुआ
कब तक अपमानों की ज्वाला में जल
अग्नि परीक्षा देती जाओगी
बोलो नारी तुम कब तक कोमल कहलाओगी
युगों-युगों की कारा से मुक्त अगर होना है
कठोर नहीं, साहसी बनना है तुमको
पुरुष नहीं, मानवी बन रहना है तुमको
सम्प्रतिः असि. प्रो.
हिन्दी , महामाया राजकीय महाविद्यालय महोना, लखनऊ
E-mail-
dr.surangmayadav@gmail.com
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