कल्पना पर आधारित...
कविताएँ और लड़कियाँ
-भावना शर्मा
सहज सरल कोमल कठोर
कविताओं सरीखी
खिलखिलाती है लड़कियाँ
कविताएँ ढ़ोती हैं
बहुत सा बोझ
भावनाएँ, जज्बात, जि़दंगी
बेतरतीब सी जि़दंगी को
तरतीब से सहेजती
खुद को खुद में सहेजती
कभी भावनाओं को
कभी जज्बातों को
कवि की कल्पना में
अदम्य शक्ति से भरी
कविताएँ ढ़ोती हैं
बहुत सी भावनाएँ
कभी प्रेम का सौन्दर्य
कभी विरह की वेदना
कभी चमकती चाँदनी
कभी प्रकृति की वेदना
ढोती है बहुत सी कहानियाँ
कविताएँ सुरम्य तारत्म्यता सी
सुर लय ताल आलंबन से युक्त
कविताएँ लड़कियों सी होती हैं
त्याग समर्पण सहेजे
खुद को सहेज कर ढ़लती सी
बहती सी कोई नदी
मिलती ज्यों सागर के गर्त में
कवि की सुन्दर कल्पना से
घिरी कविताएँ बन जाती हैं
अक्सर निबंध, उपन्यास कहानियाँ
फिर क्या कभी देखा है किसी
कविता को कभी बंधते हुए
कविता बंधंन मुक्त है हमेशा से
फिर क्या कभी किसी उपन्यास को
देखा है कोई कविता बनते हुए????
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