एक परिवार में दो महिलाएँ जेठानी और देवरानी रहती थीं। जेठानी बहुत दुष्ट और देवरानी शिष्ट, सौम्य, ईमानदार व सेवा भाव वाली थी। दोनों के ही कोई संतान नहीं थी। देवरानी जो भी कमाकर लाती, वह अपनी जेठानी को सौंप देती और दु:ख-दर्द के वक्त पूरे मनोयोग से उसकी सेवा करती, ताकि दोनों में प्रेम भाव बना रहे। देवरानी के इतना करने के बाद भी जेठानी हर समय नाराज रहती, उसके साथ किसी भी काम में हाथ नहीं बँटाती।
एक बार देवरानी बीमार पड़ गई। उसने तब भी कोई काम करना नहीं छोड़ा। वह काफी कमजोर पड़ गई। जब वह काम करने और खुद भोजन आदि तैयार करने में एकदम असमर्थ हो गई, तब उसको अपने लिए सहारे की आवश्यकता अनुभव हुई। उसने अपनी जेठानी से कुछ खाना देने को कहा; लेकिन जेठानी ने उसकी बात अनसुनी कर दी। यहाँ तक कि वह सिर्फ अपने लिए खाना बनाती और देवरानी को खाना नहीं देती।
जब देवरानी भूख-प्यास से व्याकुल होने लगी, तो उसने फिर अपनी जेठानी से अनुनय-विनय की; लेकिन तब भी जेठानी ने खाना नहीं दिया। जब वह मरणासन्न होकर प्यास से अत्यधिक व्याकुल हो उठी, तो उसने अपनी जेठानी से अपनी अंतिम इच्छा के रूप में एक गिलास पानी देने को कहा; लेकिन जेठानी ने एक गिलास पानी भी नहीं दिया। तब देवरानी ने मरते-मरते उसे शाप दे दिया- 'जिस प्रकार तूने मुझे एक गिलास पानी तक नहीं दिया, उसी प्रकार तुझे अगले जन्म में इस पृथ्वी का पानी खून की तरह नजर आएगा। जीवित रहते तू वर्षा के जल के लिए तड़प उठेगी।‘
कहावत है कि अगले जन्म में बड़ी बहू एक ऐसा पंछी बनी, जो कि जमीन के पानी को खून समझकर नहीं पीता है। सिर्फ वर्षा के जल के लिए तड़पता हुआ वह कहता है-'सर्ग दे दी पाणि-पाणि’।
यानि हे आकाश में छितराए बादलों मुझे पानी दे दो। वर्षा का पानी भी डेढ़ बूँद से ज्यादा उसके गले में नहीं जा पाता।
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