- डॉ. संगीता गांधी
जीवन में कुछ ऐसे पल आते हैं, जो अनायास ही मन को गुदगुदा जाते
हैं। उन पलों की खिलखिलाहट रिश्तों को प्रगाढ़ करने के साथ साथ एक नए माधुर्य से भर
देती है।
ऐसे ही पलों को एक दिन मैनें
अनुभव किया। मेरे पड़ोस की दादी माँ व उनके पोते की प्यार भरी नोंक-झोंक में।उस दिन
बरसात हो रही थी।मैं बाहर अपनी बालकनी में बरसात का आनन्द ले रही थी। सामने वाले
घर में रहने वाली दादी माँ ने आवाज़ लगाई। उनके बुलाने पर उनके घर गयी। दादी ने
मुझे बिठाया और यूँ ही अपने जीवन के किस्से सुनाने लगीं। बातों- बातों में दादी ने
एक बड़ा मनोरंजक किस्सा सुनाया।
एक दिन दादी घर में अकेली थी।
"व्योम बेटा ओ
व्योम बेटाइ!" दादी पोते व्योम को पुकार पुकार कर थक गई थी।
व्योम था कि कानों में ईयर फोन लगाए फोन में मग्न था।
हार कर दादी घुटनों को पकड़ कर उठी।
व्योम के कमरे में जा कर दादी ने उसके कानों से खींच कर ईयर फोन हटाया।
थोड़े गुस्से में बोली : "इस मुए नासपीटे फोन से बाहर भी एक दुनिया है !"
"तेरे माता -पिता बाहर गए हैं। दादी का ख्याल रखना ,तुझे बोलकर गए थे।तू है कि मेरा चिल्लाना भी न सुनता।"
" ओके दादी ,बोलो क्या काम है?"
"मुझे टी वी पर महात्मा जी का सत्संग लगा दे। मुझे चैनल सेट करना नहीं आता।”
" दादी ,क्या करोगी सत्संग सुनकर?"
" चल बड़ा आया !ये क्या बात हुई।
सत्संग न सुनूँ तो क्या मैँ भी तेरी तरह इस मुए फोन से चिपकी रहूँ !"
"यस दादी ,आज के युग में यह फोन ही सबसे बड़ा सत्संग है।"
" ठहर जा दुष्ट !कितनी बातें बनाता है।"
" दादी ,यहाँ बैठो मेरे पास।मैं आपको फोन सत्संग सुनाता हूँ।"
दादी कुछ हँसी और कुछ उत्सुकता भरी मुद्रा में सुनने लगी।
" सुनो दादी,
"यह मोबाइल वह वस्तु है जिसने मनुष्य को एक ऐसे आत्मलोक में पहुँचा दिया है -जहाँ न कोई सम्बन्ध मुख्य है न भूख न प्यासबस चेतना का केंद्र है मोबाइल।"
"पशु के अलावा अब इस संसार में एक मनुष्य ही ऐसा प्राणी शेष है ,जो चार्जर नामक बन्धन की डोर से बँधकर एक स्थान पर बिना इधर उधर विचरे शांत भाव से सिर झुकाओ आसन में बैठ सकता है।"
"मोबाइल के लिए डेटा आवश्यक है।"
"यह डेटा एक ऐसी वस्तु है जिसके द्वारा तुम एक स्थान पर स्थिर होते हुए भी बिना सूक्ष्म शरीर अथवा आत्मयात्रा के भी संसार भर का समाचार पल में पा सकते हो। तो अब यही सत्य है बाकी सब मोह- माया है।"
दादी ज़ोर से हँसी। व्योम का माथा चूमते हुए बोली
" महाराज , आपका मोबाइल सत्संग सुनकर तो मेरा जन्म सफल हो गया ।"
" आयुष्मान देवी! तो अब गुरुदेव को दक्षिणा दीजिए और बढ़िया से पकौड़े बना कर खिलाइए।"
" जो आज्ञा गुरुदेव।"
दादी व व्योम रसोई में पकौड़े बना रहे थे ।उनके ठहाके बाहर तक गूँज रहे थे।
व्योम था कि कानों में ईयर फोन लगाए फोन में मग्न था।
हार कर दादी घुटनों को पकड़ कर उठी।
व्योम के कमरे में जा कर दादी ने उसके कानों से खींच कर ईयर फोन हटाया।
थोड़े गुस्से में बोली : "इस मुए नासपीटे फोन से बाहर भी एक दुनिया है !"
"तेरे माता -पिता बाहर गए हैं। दादी का ख्याल रखना ,तुझे बोलकर गए थे।तू है कि मेरा चिल्लाना भी न सुनता।"
" ओके दादी ,बोलो क्या काम है?"
"मुझे टी वी पर महात्मा जी का सत्संग लगा दे। मुझे चैनल सेट करना नहीं आता।”
" दादी ,क्या करोगी सत्संग सुनकर?"
" चल बड़ा आया !ये क्या बात हुई।
सत्संग न सुनूँ तो क्या मैँ भी तेरी तरह इस मुए फोन से चिपकी रहूँ !"
"यस दादी ,आज के युग में यह फोन ही सबसे बड़ा सत्संग है।"
" ठहर जा दुष्ट !कितनी बातें बनाता है।"
" दादी ,यहाँ बैठो मेरे पास।मैं आपको फोन सत्संग सुनाता हूँ।"
दादी कुछ हँसी और कुछ उत्सुकता भरी मुद्रा में सुनने लगी।
" सुनो दादी,
"यह मोबाइल वह वस्तु है जिसने मनुष्य को एक ऐसे आत्मलोक में पहुँचा दिया है -जहाँ न कोई सम्बन्ध मुख्य है न भूख न प्यासबस चेतना का केंद्र है मोबाइल।"
"पशु के अलावा अब इस संसार में एक मनुष्य ही ऐसा प्राणी शेष है ,जो चार्जर नामक बन्धन की डोर से बँधकर एक स्थान पर बिना इधर उधर विचरे शांत भाव से सिर झुकाओ आसन में बैठ सकता है।"
"मोबाइल के लिए डेटा आवश्यक है।"
"यह डेटा एक ऐसी वस्तु है जिसके द्वारा तुम एक स्थान पर स्थिर होते हुए भी बिना सूक्ष्म शरीर अथवा आत्मयात्रा के भी संसार भर का समाचार पल में पा सकते हो। तो अब यही सत्य है बाकी सब मोह- माया है।"
दादी ज़ोर से हँसी। व्योम का माथा चूमते हुए बोली
" महाराज , आपका मोबाइल सत्संग सुनकर तो मेरा जन्म सफल हो गया ।"
" आयुष्मान देवी! तो अब गुरुदेव को दक्षिणा दीजिए और बढ़िया से पकौड़े बना कर खिलाइए।"
" जो आज्ञा गुरुदेव।"
दादी व व्योम रसोई में पकौड़े बना रहे थे ।उनके ठहाके बाहर तक गूँज रहे थे।
दादी की इन
बातों को याद कर ज़ोर -ज़ोर से हँस रही थी औरमैं भी ठहाके लगाने से स्वयं को नहीं
रोक पायी।
Email- rozybeta@gmail.com
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