कभी तो
सुबह होगी
- शबनम
शर्मा
चलो ज़रा मुड़ते हैं आज
बीते दिनों की टोह लेते हैं
पुरानी गलियों में से गुज़रके
ज़रा सा आज रो लेते हैं
कमबख़्त रात ख़त्म ही नहीं होती
लम्बी बहोत है सुरंग सी
दीवारें सील गई हैं
हो बैठी हैं बेरंग सी
लफ्क़ा चीख़ रहे हैं
पर क्रब्र में वो दफ्ऩ हैं
आँसू थक चुके हैं
चुप से वो दिल में ही मग्न हैं
सोचा आसपास देख लूँ
किसी शख़्स को ढूँढ लूँ
फिर सोचा रहने दूँ
मेरे हिस्से की छाँव है
क्यूँ ज़हर किसी को दूँ
एक छोटा सा बादल बाकी है
उससे ही आस है
नहीं तो आसमान पूरा का पूरा
मेरे खि़लाफ़ है
कभी तो धूप खिलेगी
कभी तो सुबह होगी
इसी आस में चल रहा हूँ
इक इसी उम्मीद की ख़ातिर
दर्जनो चोले बदल रहा हूँ
सम्पर्क: अनमोल कुंज, पुलिस चैकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. मो. 09816838909, 0963856923, Email- shabnamsharma2006@yahoo.co.in
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