टाटा संस्कृति
- विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
पारसी समुदाय के लिए मेरे मन में गहरी श्रद्धा है। यह एक सिद्धांतप्रिय कौम
है। आज से कई वर्ष पूर्व जब ईरान से चलकर
यह कौम अपने बुज़ुर्गों सहित भारत आई तो गुजरात में काठियावाड़ तट पर उनकी नाव
लगी। काठियावाड़ नरेश से उन्होंने जब शरण हेतु संदेश भेजा तो राजा ने उन्हें दूध
से पूरा भरा गिलास भिजवा दिया यानी यह पहले से भरा हुआ है, कोई गुजाइंश नहीं है। तब एक
पारसी बुजुर्ग ने उसमें चीनी मिलाकर लौटाया कि हम बगैर अतिरिक्त जगह की चाह के दूध
में शक्कर की मिठास सदृश्य मिलजुल कर रहेंगे।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि उसी दौर में नरेश को दिए गए 3 वचनों पर वे आज भी
कायम है। पहला धर्म परिवर्तन का प्रयास नहीं करेंगे। दूसरा यहाँ की भाषा अंगीकार
करेंगे तथा तीसरा देश के उत्थान के प्रति समर्पित रहेंगे।
इसीलिए आपने देखा ही होगा कि पारसी केवल जन्मजात होता हैं, परिवर्तित नहीं। दूसरा वे भाषा
गुजराती बोलते हैं। और तीसरा जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा से लेकर रतन टाटा तक सबका
योगदान सर्वविदित है।
किसी भी कार्य की संस्कृति का आधार होती है उसकी संस्कृति और सिद्धांतों के
प्रति समर्पण। संरचना तो केवल माध्यम हैं। आत्मा तो उसके मूल मूल्यों में बसी रहती
हैं। लंबे दौर तक केवल वे ही बने रहते हैं, जो अच्छे, सच्चे और ईमानदार तरीके से अपने कार्य को अंजाम देते
हैं।
इसका सबसे बड़ा उदारण ही टाटा समूह का है जो वर्षों से समर्पण, उदारता व परोपकार की भावना से
न केवल खुद आगे बढ़ा है, अपितु देश और सहयोगियों की उन्नति
का आधार भी बना है।
टाटा समूह के चारों अक्षरों का अपने आप में अर्थ निहित है। वे उसकी
संस्कृति अंग बन गए है पहले टी का अर्थ है ट्रस्ट यानी विश्वास, दूसरा कहलाता है एटीट्युड
अर्थात मानसिकता। तीसरी टी का अर्थ है टेलेंट यानी प्रतिभा और अंतिम अक्षर ए ठहरता
है एप्टीट्यूड या क्षमता पर।
T / टी : विश्वास (Trust)
A / ए : मानसिकता (Attitude)
T / टी : प्रतिभा
(Talent )
A / ए : क्षमता (Aptitude)
कहा जाता है न कि कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं। टाटा समूह की नौकरी तब से
लेकर आज तक के सारे दौर के दरमियान सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। बचपन में सुनी एक
कहावत आज भी मेरे जेहन में गूंजती है -
नौकरी हो टाटा
जूता हो बाटा
26 / 11 मुबई हमले में तबाह ताज होटल इसी भावना के तहत एक वर्ष के भीतर
पूरी साज सज्जा के साथ पुन: देश के समक्ष अवतरित हो गया। आपको यह जानकर भी आश्चर्य
होगा कि न केवल अपने कर्मचारियों वरन होटल के सामने बैठकर व्यवसाय करने वाले, घायल खोमचाधारी व्यक्तियों तक
को पूरी आर्थिक सहायता प्रदान कर पुन: व्यवस्थापित किया गया।
ऐसे उदात्त, दरियादिली
और परोपकार की ओर कितने उदारण हमारे सामने हैं। यही भाव आदमी को ऊपर उठाता है और
समाज में सफलता के साथ सम्मान की निधि भी प्रदान करता हैं।
सम्पर्क- 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास) भोपाल- 462023, मो.
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