ट्रिंग
ट्रिंग वाली घंटी, गोल घुमाने वाले नंबर..वायरलेस
और मोबाइल दुनिया में कहीं खो गए हैं।
1875 में अलेक्जैंडर ग्राहम बेल ने अकूस्टिक टेलीग्राफ विकसित किया और इसको
पेटेंट करवाने का आवेदन भी तैयार किया. उन्होंने अमेरिका में होने वाला मुनाफा
अपने निवेशकों के साथ साझा करने का वादा कर लिया था. अपने एक सहयोगी को उन्होंने
इसे ब्रिटेन में भी पेटेंट करवाने के लिए कहा. साथ ही अपने वकील को उन्होंने यह भी
कहा कि ब्रिटेन से पेटेंट का वादा मिलने के बाद ही अमेरिका में पेटेंट की कोशिश की
जाए।
एलिशा
ग्रे नाम की महिला भी अकूस्टिक टेलीग्राफ पर प्रयोग कर रही थीं. 14 फरवरी 1876 के दिन ग्रे ने अमेरिकी
पेटेंट ऑफिस में ऐसे टेलीफोन डिजाइन के पेटेंट के लिए आवेदन किया जिसमें वॉटर
ट्रांसमीटर का इस्तेमाल किया गया था। उसी दिन बेल के वकील ने भी पेटेंट का आवेदन
किया। इस पर लंबी बहस है कि पेटेंट करवाने कौन पहले पहुँचा था। ग्रे ने बाद में
बेल के पेटेंट आवेदन को चुनौती भी दी।
बहरहाल
सारे विवाद के बीच ग्राहम बेल का पेटेंट, 174465 सात मार्च 1876 यानी आज के दिन अमेरिका में स्वीकृत
हो गया। उनके पेटेंट में आवाज या दूसरी आवाजें ट्रांसमिट करने के तरीके और उपकरण
शामिल थे। उन्होंने अगले ही दिन से इसके मॉडल पर काम शुरू किया। जो शुरुआती डिजाइन
उन्होंने बनाया, वह ग्रे के पेटेंट जैसा ही था।
10
मार्च 1876 के दिन उनका टेलीफोन लिक्विड ट्रांसमीटर के जरिए
काम करने लगा, ये भी ग्रे की डिजाइन जैसा ही था।
आवाज के
कंपन से पर्दा हिलता और इससे पानी में एक सुई हिलती, इस प्रक्रिया से सर्किट में इलेक्ट्रिक प्रतिरोध पैदा होता। इस फोन पर
उन्होंने मशहूर वाक्य बोले थे, "मिस्टर वॉटसन यहां आइए,
मैं आपसे मिलना चाहता हूँ।" अगले कमरे में बैठे वॉटसन रिसीवर
के जरिए इस वाक्य को साफ साफ सुन सके।
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