-नमस्ते
सपना जी, कैसी हैं आप।
-ओ हो रमा
बहन आप... आइए आइए
-अब आपके
तो दर्शन ही दुर्लभ हो गए है तो सोचा हम ही जाकर मिल आते हैं।
-ये तो
आपने बहुत अच्छा किया रमा बहन।
-बहू के
राज में कैसी कट रहीं हैं।
-अरे क्या
बताए जब से आई है जीना मुश्किल कर रखा है, अब
तो बेटा भी मेरा नहीं रहा, जानें क्या घोंटकर पिलाती है ऐसा,
जो उसीकी जुबान बोलता हैं।
रमा
आश्चर्य से- ऐसा क्या हो गया ?
-क्या
बताएँ अब आपको। बस सबका खाना बनाकर ऑफिस चली जाती हैं, ना बर्तन साफ करती है ना हमारे किसी के कपड़े धोती हैं।
रमा- आजकल
की बहुओं को काम का तो नाम ही नहीं सुहाता। पता नहीं माँ के घर से कुछ सीखकर भी
नहीं आती।
-हाँ सही
कहा रमा। अच्छा चलो ये बताओ अपनी पूजा कैसी है, कैसा
चल रहा है उसका ससुराल में जीवन।
-हमारी
पूजा तो बहुत अच्छी है ससुराल में। दामाद जी तो हैदराबाद में नौकरी करते हैं। पूजा
की सरकारी नौकरी है तो वो यहीं रहती है सास-ससुर के साथ।
रमा- चलो
ये तो अच्छा है छोटा परिवार हैं।
सपना- हाँ, मैंने तो पूजा को समझा दिया कि नौकरी और घर का काम दोनों एक
साथ कैसे करोगी। जब दामाद जी आ जाएँ तब अपना किचन अलग कर लेना, जिससे खुद का ही खाना बनाना पड़ें। वरना सबके कपड़े, बर्तन और ऊपर से नौकरी सारे काम एक साथ थोड़ी- ना होते हैं।
रमा- हाँ
सही बात कही एकदम, फिर सास भी तो है सारा दिन घर
में ही तो रहती है, कुछ काम वो भी कर ही सकती हैं। जरूरी है
क्या सारा काम बहू ही करे।
सपना-चिंता
की कोई बात नहीं, अपनी पूजा को अच्छे से सिखाया
है मैने घर चलाना।
सम्पर्क:
1916, खेजड़ो का रास्ता, चांदपोल, जयपुर, 919694546875,
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neet.viya@gmail.com
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