दिल्ली
के प्रदूषण पर पंजाब के पराली से लेकर पश्चिम एशिया की आँधी तक पर उंगली उठ रही है
लेकिन दिल्ली में जलाए जा रहे हजारों टन कचरे पर कोई बात नहीं हो रही है। कचरे में
जैविक और अकार्बनिक हर तरह के पदार्थ शामिल होते हैं जिन्हें जलाने से जहरीले
रसायन निकलते हैं।
यहाँ
तक कि ओखला पावर प्लांट को प्रदूषण फैलाने का दोषी भी पाया गया था जिसके लिए राष्ट्रीय
हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इस पर जुर्माना भी लगाया था। फिर भी प्रदूषण न रुकने पर
इसे बन्द करने की चेतावनी भी दी गई थी। इसके बाद भी पिछले दिनों पर्यावरणविदों के
विरोध के बाद भी कचरे से बिजली बनाने के तीन संयंत्र चल रहे हैं और चौथे को चालू
करने की कोशिश जारी है।
पर्यावरणविदों
ने इस पर सवाल उठाया है। पंजाब में पराली जलाने से प्रदूषण होने को लेकर गम्भीर
चर्चा हो रही है लेकिन दिल्ली के अन्दर घनी आबादी वाले इलाके में कूड़े से बिजली
बनाने के संयंत्र हैं। विशेषज्ञों का कहना है जिस तरह से पुआल जलाने से प्रदूषण
होता है, उसी तरह से कचरा जलाना भी घातक है। इसमें भी जैविक कचरा तो
है ही प्लास्टिक सहित कई प्रतिबन्धित चीजें इनमें शामिल हैं। ‘दि टॉक्सिक वॉच अलायंस’ के संयोजक गोपाल कृष्णन ने
हैरानी जताते हुए कहा कि लोग पुआल जलाने पर तो परेशान हैं लेकिन कचरे से बिजली
बनाने में उन्हें कोई समस्या नज़र नहीं आती
है।
उन्होंने
बताया कि दिल्ली में रोजाना आठ हजार मीट्रिक टन कचरा निकलता है जिनमें से ओखला में
दो हजार मीट्रिक टन कचरा जलाकर बिजली बनाई जाती है। वहीं, नरेला बवाना में लगे दो संयंत्रों में क्रमशः तीन और दो
हजार मीट्रिक टन कचरे को जलाने वाले संयंत्र लगे हैं। इतना ही नहीं विशेषज्ञों
सहित स्थानीय निवासियों के व्यापक विरोध के बाद भी कचरे से बिजली बनाने को मंजूरी
दी गई।इसे
समाधान के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन पिछले दिनों आईआईटी दिल्ली में हुए सम्मेलन
में पेश किए गए वैज्ञानिक परचे में गोपाल कृष्णन ने बताया कि ठोस कचरे को जलाना
घातक है। कचरे को जलाने से जहरीले रसायन हवा में घुलते हैं। ऑस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, बेल्जियम सहित कई देश कचरे
जलाने की बजाय रिसाइकिल करके उसका इस्तेमाल करते हैं। वर्ष 2006 में योजना आयोग की
ओर से गठित टास्क फोर्स के अगुवा डॉ. एसएस खन्ना ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि
कचरे को जलाना नहीं चाहिए। इसलिए बिजली के संयंत्र लगाने की बजाय जैविक खाद बनाने
के कारखाने लगाने चाहिए। (जनसत्ता)
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