मनुष्य
गहरी निराशा के क्षणों में अकेला बैठा था. तब सभी जीव-जंतु उसके निकट आए और उससे
बोले:-
- तुम्हें इस प्रकार दु:खी देखकर हमें अच्छा नहीं लग रहा।
तुम्हें हमसे जो भी चाहिए तुम माँग लो
और हम तुम्हें वह देंगे।
मनुष्य ने कहा, मैं
चाहता हूँ कि मेरी दृष्टि पैनी हो जाए.
गिद्ध ने उत्तर दिया, मैं
तुम्हें अपनी दृष्टि देता हूँ।
मनुष्य ने कहा, मैं
शक्तिशाली बनना चाहता हूँ।
जगुआर ने कहा, तुम
मेरे जैसे शक्तिशाली बनोगे।
फिर मनुष्य ने कहा, मैं
पृथ्वी के रहस्यों को जानना चाहता हूं.
सर्प ने कहा, मैं
तुम्हें उनके बारे में बताऊँगा।
इस प्रकार अन्य जीव-जन्तुओं ने भी मनुष्य को
अपनी खूबियाँ और विलक्षणताएँ सौंप दीं। जब मनुष्य को उनसे सब
कुछ मिल गया तो वह अपने रास्ते चला गया।
जीव-जन्तुओं के समूह में उपस्थित उल्लू ने सभी
से कहा, अब जबकि मनुष्य इतना कुछ जान गया
है, वह बहुत सारे कामों को करने में सक्षम होगा। इस
विचार से मैं भयभीत हूँ।
हिरण ने कहा, मनुष्य
को जो कुछ भी चाहिए, वह
उसे मिल तो गया! अब वह कभी उदास नहीं होगा।
उल्लू ने उत्तर दिया, नहीं।
मैंने मनुष्य के भीतर एक अथाह विवर देखा है। उसकी नित-नई इच्छाओं की पूर्ति कोई
नहीं कर सकेगा। वह फिर उदास होगा और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए निकलेगा। वह
सबसे कुछ-न-कुछ लेता जाएगा, और एक दिन यह पृथ्वी ही कह देगी, 'मैं
पूरी रिक्त हो चुकी हूँ, मेरे
पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है।
(मेल गिब्सन द्वारा वर्ष 2006 में
निर्मित व निर्देशित अमेरिकन एपिक एडवेंचर फिल्म एपोकेलिप्टो से) हिन्दी ज़ेन से
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