1 छाया है अब बसंत
मन ने उमंग भरी, तूलिका ने भरे रंग,
कोयलिया कूक रही, बाजे है मन मृदंग !!
कोयलिया कूक रही, बाजे है मन मृदंग !!
फूलों की चिटकन है, रंगों की छिटकन है,
भँवरे की गुंजन है, छाया जो रंजन है !!
धूप में निखार आया रंग की बहार छाई ,
अमुआ की मंजरिया देखो कैसी बौराई !!
पीत वसना धरती है, धारती जो पीत वसन ,
धरती से अम्बर तक आया है अब बसंत !!
कंचन -सी धूप खिली छाया है अब बसंत !!
सतरंगी चूनर, लहराया है अब बसंत
राग है बहार संग मनवा है यूँ मगन !
छेड़ो अब तान कोई ,लागी कैसी लगन,
प्रकृति में बिखरा चहुँ ओर उन्माद है ,
हरस रही सरसों है प्रीति का आह्लाद है,
रंग है बहार है रूप का शृंगार है ,
खिलती हुई कलियों पर आया जो निखार
है...!!
सतरंगी...पुष्पों पर छाया है अब बसंत
मदमाती सुरभि लहराया है अब बसंत...!!
रोम रोम पुलकित, मदमाया है अब बसंत
छाया है अब बसंत!! छाया है अब बसंत...!!
2 मणि -सी कविता ...!!
किसलय का डोलता अंचल ,
नदी पर गहरी स्थिर लहरें चंचल
झींगुर का रुनक- झुनक- सा नाद ...
करता हैं कैसा संवाद
पग
धरती विभावरी ,
धरती श्यामल आशा -भरी,
कोलाहल से दूर का कलरव ,
मन शांत प्रशांत नीरव
अनृत से प्रस्थान करते ,
नीड़ की ओर उड़ते पखेरू ,
मणिकार की मणि- सा ...
स्निग्द्ध धवल मार्ग दर्शाता विधु
शब्द बुनते भाव इस तरह
फिर लरजती लाजवन्ती ज्यों ,
उतरती है मन में.
जैसे...,
कोई मणि -सी कविता ...!!
3 अभिनन्दन
नीलम नभ से ,
किरणों की पावस सरिता ,
दिक् उज्ज्वल,
विचरण करती
अम्बर से धरणी तक,
नव छंदों में,
झर झर झर झर
स्वर्णिम अनिमेष अनश्वर
अंजुरी से शब्दों की ,
अभिनव,
चपल दिवस का नंदन ,
नव संवत्सर अभिनन्दन ,
मैं करती
नूतन भावों से
निज चेतन संवेदन ...!!
mo. 09350210808, tripathi_anupama@yahoo.com
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