- गिरीश
पंकज
1.
अंगार लिखता है
कोई तकरार लिखता है कोई इनकार
लिखता है
हमारा मन बड़ा पागल हमेशा
प्यार लिखता है
वे अपनी खोल में खुश हैं कभी
बाहर नहीं आते
मगर ये बावरा दुनिया, जगत, व्यवहार लिखता है
ये जीवन राख है गर प्यार का
हिस्सा नहीं कोई
ये ऐसी बात है जिसको सही
फनकार लिखता है
कोई तो एक चेहरा हो जिसे दिल
से लगा लूँ मैं
यहाँ तो हर कोई आता है
कारोबार लिखता है
तुम्हारे पास आ जाऊँ पढ़ूँ कुछ गीत सपनों के
तुम्हारे नैन का काजल गजब
श्रृंगार लिखता है
अगर हारे नहीं टूटे नहीं तो
देख लेना तुम
वो तेरी जीत लिक्खेगा अभी जो
हार लिखता है
यहाँ छोटा-बड़ा कोई नहीं सब
जन बराबर हैं
मेरा मन जि़न्दगी को इस तरह
तैयार लिखता है
हमारी दोस्ती उससे भला होगी
कहो कैसे
मैं हूँ पानी मगर वो हर घड़ी
अंगार लिखता है
उधर हिंसा हुई, कुछ रेप, घपले, हादसे ढेरों
ये कैसी सूरते दुनिया यहाँ
अखबार लिखता है
वो खा-पीकर अघाया सेठ कल बोला
के सुन पंकज
जऱा दौलत कमा ले तू तो बस
बेकार लिखता है
2. कह
कर चले आए
पेड़ था फलदार तो पत्थर चले
आए
क्या करें हम चोट बस खाकर
चले आए
लोग जलते हैं यहाँ क्यों फल
रहे हैं हम
झेलकर इस दर्द को हँस कर चले
आए
शातिरों के हाथ में है अब अदब
की डोर
जब दिखा यह दृश्य हम कटकर
चले ले आए
राग कुरसी जब सुनाया जा रहा
था तब
मन दु:खी होने लगा उठ कर चल
आए
दर्द में डूबी निशा को भूल
बैठे हम
तुम अचानक दूत-से बन कर चले
आए
आँसुओं की इक नदी बहने लगी जब
भी
रोकने उनको सभी अक्षर चले आए
एक मेला-सा लगे बर्बादियों का
अब
थी बड़ी किस्मत कि जो बचकर
चले आए
लूटते थे लोग पहले जो विदेशी
थे
अब तो है ये हाल कि रहबर चले
आए
प्यार से जिसने पुकारा हम गए
उस ओर
इक नदी की धार से बहकर चले आए
देख कर हमको खुशी जाहिर न की
उसने
अब न पंकज आएगा कहकर चले आए
--
दस व्यंग्य संग्रह और पांच
उपन्यासों के लेखक गिरीश पंकज वैसे तो मूलत: व्यंग्यकार के रूप मे ही पहचाने जाते
है लेकिन बहुत कम लोग इस तथ्य से परिचित है कि वे गज़़ले भी कहते है। गत वर्ष उनका
दूसरा गज़़ल संग्रह प्रकाशित हुआ था- यादों
में रहता है कोई
सम्पर्क: जी- 31, नया पंचशील नगर, रायपुर (छ. ग.)
1 comment:
पंकज जी व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं ही , साथ ही धारदार ग़ज़लों से भी पाठको के मन को छू जाते हैं।
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