कराहते पहाड़ों का सच
डॉ.कविता भट्ट
पीड़ा में कराहते
पहाड़ों का सच,
यदि जान भी लोगे तो
क्या कर लोगे।
दर्द- खेतों से पेट
न भरने का,
बर्तनों- गागरों के
प्यासे रहने का,
घरो के उजड़ने, खाली
होने का,
वनों के कटने, वानर
राज होने का,
यदि जान भी लोगे तो
क्या कर लोगे।
सच सड़कों पर सजती मौतों
का,
रोते शिशुओं, सिसकती
औरतों का,
खाली होते गाँवों और धधकते वनों का,
अपनापन खोते, संवेदनहीन
रिश्तों का,
यदि जान भी लोगे तो
क्या कर लोगे।
सच- खाली होते
पंचायत स्कूलों का,
सूखते स्रोतों, खोते
बुराँस के फूलों का,
बुनती हुई सड़कों के
अर्थहीन जालों का,
बिकते मूल्यों, उफनते
राजनेताओं के वादों का सच,
यदि जान भी लोगे तो
क्या कर लोगे।
लेखिका के बारे में- जन्म- 06 अप्रैल, 1979, शिक्षा-
एमए (दर्शन, योग, अंग्रेजी,
समाजकार्य), पी एचडी, पी
दी ए$फ महिला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नयी
दिल्ली दर्शन विभाग हे.न.ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर उत्तराखंड, सम्पर्क: द्वारा सुभाष चन्द्र भट्ट, सैण्ट्रल
लाइब्रेरी, बिरला कैम्पस,
हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर, गढ़वाल-246174
(उत्तराखण्ड), Email-mrs.kavitabhatt@gmail.com
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